सोरेन की ‘जेल यात्रा’ बीजेपी पर भारी! झारखंड में हेमंत सोरेन ने तोड़ा 24 साल पुराना रिकॉर्ड

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झारखंड विधानसभा चुनाव परिणाम: झारखंड का मूड सत्ता बदलते रहने का रहा है. वोटिंग प्रतिशत बढ़े या घटे, राज्य में सत्ता बदलती रहती है. लेकिन, चुनाव नतीजों के रुझान में यह ट्रेंड बदल रहा है. ताजा रुझान में झारखंड में 24 साल का रिकॉर्ड टूट रहा है. पहली बार कोई पार्टी राज्य में जोरदार वापसी कर रही है. ताजा रुझान में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के नेतृत्व वाला भारत गठबंधन 88 में से 55 सीटों पर आगे चल रहा है. नतीजे में यही रुख बदला तो झारखंड में हेमंत सोरेन की वापसी तय है. जेएमएम 31 सीटों पर आगे चल रही है. जेएमएम की सहयोगी कांग्रेस 12 सीटों पर, राजद 6 सीटों पर और लेफ्ट दो सीटों पर आगे चल रही है. झारखंड में इस रुझान के बाद अब यह चर्चा होने लगी है कि क्या हेमंत सोरेन की जीत का दरवाजा जेल से खुला?

 

लोकसभा चुनाव से पहले ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को गिरफ्तार किया था. गिरफ्तारी से पहले हेमंत सोरेन राजभवन पहुंचे और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. हेमंत की गिरफ्तारी के बाद न सिर्फ झारखंड में सत्ता का चेहरा बदल गया, बल्कि आदिवासी बहुल राज्य के राजनीतिक माहौल में भी बड़ा उलटफेर हुआ. जिसे पांच प्वाइंट में समझा जा सकता है.

1. आदिवासी पहचान का दांव

आदिवासी समुदाय झामुमो का मुख्य वोट बैंक है. झामुमो ने हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को आदिवासी अस्मिता से जोड़ा. पार्टी के इस दांव से आदिवासी वोटबैंक पर हेमंत और उनकी पार्टी की पकड़ पहले से ज्यादा मजबूत हो गई. लोकसभा चुनाव में झामुमो और इंडिया गठबंधन ने आदिवासी बहुल इलाकों में अच्छा प्रदर्शन किया. विधानसभा चुनाव के रुझानों में आदिवासी सीटों पर झामुमो की बढ़त इसी दिशा में संकेत मानी जा रही है. हेमंत सोरेन ने एक बार फिर आदिवासी राजनीति पर अपनी पकड़ साबित की है.

2. जेल जाने से सत्ता विरोधी लहर शून्य हो गई

गिरफ्तारी से हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार को कुछ महीनों की छुट्टी मिल गई। हेमंत की गिरफ्तारी के बाद चंपई सोरेन कुछ महीनों तक मुख्यमंत्री रहे और जेल से रिहा होने के बाद और चुनाव से कुछ महीने पहले मुख्यमंत्री सोरेन ने फिर से सरकार की कमान संभाली. बीच में टूट का नतीजा कहें कि जेल जाने से मिली सहानुभूति, हेमंत सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी फैक्टर शून्य हो गया है और इसी वजह से सहानुभूति मिली है.

 

3. चंपई-सीता के दलबदल से भी फायदा हुआ

लोकसभा चुनाव से पहले हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन ने केसरियो को गोद लिया था. परिवार में तख्तापलट से झामुमो को एक और बड़ा झटका लगा है. साथ ही मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने से नाराज चंपा सोरेन भी बीजेपी में शामिल हो गईं. पहले हेमंत की गिरफ्तारी और बाद में पार्टी में बगावत के बाद झामुमो ने विपक्ष पर आदिवासी मुख्यमंत्री को परेशान करने, परिवार को तोड़ने और किसी भी तरह से सत्ता हासिल करने के लिए हर हथकंडा अपनाने का आरोप लगाया. अगर हालिया रुझान नतीजों में बदलते हैं तो इस बात पर मुहर लग जाएगी कि सत्ता पक्ष विपक्ष के खिलाफ नैरेटिव सेट करने में कामयाब हो गया है.

 

4.हेमंत सोरेन का कद हुआ मजबूत

ईडी की कार्रवाई से लेकर चंपई सोरेन के दलबदल तक, झारखंड में इन घटनाक्रमों ने हेमंत सोरेन के कद को मजबूत किया। ईडी की कार्रवाई और भाभी की बगावत ने जेएमएम और हेमंत सोरेन की छवि एक ऐसे नेता की बना दी जो किसी दबाव के आगे नहीं झुकते. चंपई विद्रोह के समय उनके साथ कोल्हान क्षेत्र के कई विधायक झामुमो छोड़ने की चर्चा कर रहे थे. इसके बाद हेमंत ने खुद कमान संभाली और नतीजा ये हुआ कि चंपई के पास अपने बेटे के अलावा झामुमो से बगावत कर बीजेपी में शामिल होने के लिए कोई सहारा नहीं बचा. इससे हेमंत की छवि और मजबूत हो गई.

5. पत्नी पलट गई?

जेल जाने से पहले हेमंत अपनी पत्नी कल्पना सोरेन की छवि एक कुशल गृहिणी के रूप में रखते थे. राजनीति से दूर रहीं कल्पना पति के जेल जाने के बाद राजनीति में सक्रिय हो गईं और गांडेय सीट से उपचुनाव जीतकर पहली बार विधायक चुनी गईं। कल्पना के राजनीति में आने से हेमंत को ताकत मिली. चुनावी सभा के मामले में कल्पना न सिर्फ अपने पति का हर कदम पर साथ देती दिखीं, बल्कि बीजेपी की साइलेंट वोटर मानी जाने वाली महिला वोटरों को भी जेएमएम के पक्ष में लाने में कामयाब रहीं.