Smartphone Market : शाओमी का वो एक दांव, जो Apple-Samsung को बर्बाद कर सकता था, जानें फिर असल में हुआ क्या

Post

News India Live, Digital Desk: Smartphone Market : स्मार्टफोन की दुनिया एक जंग के मैदान की तरह है, जहां दो बादशाहों, Apple और Samsung, का राज चलता है. ये दोनों कंपनियां प्रीमियम सेगमेंट, यानी महंगे फोन बेचकर अरबों-खरबों कमाती हैं. लेकिन एक वक्त था जब एक खिलाड़ी ने इन दोनों बादशाहों के किले में सेंध लगाने की एक बहुत बड़ी और जोखिम भरी कोशिश की थी. वो खिलाड़ी था शाओमी (Xiaomi).

शाओमी, जिसे हम सब शानदार बजट और मिड-रेंज फोन बनाने के लिए जानते हैं, ने एक ऐसा दांव खेला था कि अगर वो कामयाब हो जाता, तो आज Apple और Samsung की बादशाहत हिल गई होती. लेकिन वो दांव उल्टा पड़ गया. चलिए जानते हैं कि आखिर वो कौन सा रिस्की मूव था और असल में हुआ क्या था.

शाओमी का सबसे 'रिस्की' कदम

हम सब जानते हैं कि शाओमी कम कीमत में बेहतरीन फीचर्स वाले फोन बनाती है. यही उसकी पहचान है. लेकिन कुछ साल पहले, कंपनी ने अपनी इस इमेज से बाहर निकलने और सीधे iPhone और Samsung की Galaxy S सीरीज को टक्कर देने का फैसला किया.

इसके लिए शाओमी ने Xiaomi 12 Pro जैसे फ्लैगशिप फोन लॉन्च किए. इन फोन्स में उस वक्त के सबसे बेस्ट कैमरा, सबसे तेज प्रोसेसर और सबसे शानदार डिस्प्ले दिया गया था. यानी कागजों पर यह फोन किसी भी iPhone या सैमसंग के फोन से कम नहीं था. कंपनी ने सोचा कि जब हम कम कीमत में इतने अच्छे फोन दे सकते हैं, तो लोग हमसे महंगा और सबसे बेस्ट फोन क्यों नहीं खरीदेंगे? यही शाओमी का सबसे बड़ा दांव था - प्रीमियम मार्केट पर कब्जा करना.

अगर ये दांव चल जाता तो क्या होता?

सोचिए, अगर लोगों ने iPhone और Samsung को छोड़कर शाओमी का महंगा फोन खरीदना शुरू कर दिया होता. इसका सीधा असर Apple और Samsung की तिजोरी पर पड़ता. स्मार्टफोन बाजार का 80% से ज्यादा मुनाफा सिर्फ महंगे फोन बेचने से आता है. अगर शाओमी इसमें से 10-15% हिस्सा भी छीन लेती, तो इन दोनों बड़ी कंपनियों को अरबों डॉलर का नुकसान होना तय था. स्मार्टफोन की दुनिया का नक्शा ही बदल जाता.

लेकिन हकीकत कुछ और ही थी...

शाओमी का यह बड़ा दांव बुरी तरह फेल हो गया. Xiaomi 12 Pro और उसके जैसे दूसरे प्रीमियम फोन्स को उतने खरीदार नहीं मिले, जितनी कंपनी को उम्मीद थी. लेकिन ऐसा हुआ क्यों? इसके पीछे कुछ बड़ी वजहें थीं:

  1. ब्रांड इमेज का खेल: जब कोई इंसान 80,000 रुपये या 1 लाख रुपये खर्च करता है, तो वो सिर्फ फोन नहीं, बल्कि एक 'ब्रांड' और 'भरोसा' भी खरीदता है. सालों से लोगों के दिमाग में यह बात बैठ चुकी है कि 'प्रीमियम' का मतलब Apple या Samsung है. शाओमी की छवि एक 'सस्ता और अच्छा' फोन बनाने वाली कंपनी की थी. इस वजह से लोग महंगा शाओमी फोन खरीदने में हिचकिचाए.
  2. लोगों की आदत और इकोसिस्टम: जो लोग सालों से iPhone इस्तेमाल कर रहे हैं, वो एप्पल के इकोसिस्टम (iCloud, iMessage, AirDrop) में बुरी तरह फंस चुके हैं. उनके लिए एंड्रॉयड पर आना बहुत मुश्किल होता है. यही हाल सैमसंग के यूजर्स का भी है.
  3. पुराने फोन की कीमत (Resale Value): iPhone की रीसेल वैल्यू आज भी किसी भी दूसरे फोन से कहीं ज्यादा है. लोगों को पता है कि 2 साल बाद भी उनका फोन अच्छी कीमत में बिक जाएगा. शाओमी के फोन्स के साथ ऐसा नहीं है.

यह शाओमी के लिए एक महंगा सबक था. उन्होंने सीखा कि सिर्फ अच्छे स्पेसिफिकेशन्स देने से कोई ब्रांड प्रीमियम नहीं बन जाता. इसके लिए सालों का भरोसा और एक ब्रांड वैल्यू बनानी पड़ती है. हालांकि, शाओमी ने हार नहीं मानी है और आज भी Xiaomi 14 Ultra जैसे फोन्स से प्रीमियम मार्केट में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रही है. लेकिन वो एक 'रिस्की मूव', अगर चल जाता, तो आज स्मार्टफोन की कहानी कुछ और ही होती.

--Advertisement--