Significance of Akshaya Tritiya : जब गणेश जी ने अपनी सूंड से लिख डाली दुनिया की सबसे बड़ी कहानी
News India Live, Digital Desk: क्या आप जानते हैं कि दुनिया का सबसे बड़ा महाग्रंथ, महाभारत, किसने और कब लिखा था? यह कहानी भी उतनी ही रोचक है जितनी महाभारत की अपनी गाथाएँ। यह कोई मामूली कहानी नहीं है, बल्कि एक ऐसी घटना है जिसमें ज्ञान, समर्पण और सही समय का अद्भुत मेल देखने को मिलता है।
जब वेद व्यास जी को एक लेखक की ज़रूरत पड़ी
महर्षि वेद व्यास जी ने महाभारत की पूरी कहानी अपने मन में रच ली थी। लेकिन उनके सामने एक बड़ी चुनौती थी - इस विशाल ज्ञान को लिखेगा कौन? व्यास जी बहुत तेज़ी से बोलते थे और उनके श्लोक भी काफी गहरे अर्थ वाले होते थे। उन्हें कोई ऐसा लेखक चाहिए था जो उनकी गति के साथ तालमेल बिठा सके और हर बात को समझकर लिख सके।
अपनी इस दुविधा के साथ वो ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी ने उन्हें सुझाव दिया कि इस काम के लिए सबसे सही व्यक्ति भगवान गणेश ही हो सकते हैं।
गणेश जी ने रखी एक अनोखी शर्त
वेद व्यास जी गणेश जी के पास पहुँचे और उनसे महाभारत लिखने की प्रार्थना की। गणेश जी मान तो गए, लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी। उन्होंने कहा, “मैं लिखना शुरू करूँगा तो मेरी कलम एक पल के लिए भी नहीं रुकनी चाहिए। अगर कलम रुकी तो मैं वहीं लिखना बंद कर दूँगा।”
व्यास जी जानते थे कि गणेश जी की बुद्धि और लिखने की गति बहुत तेज़ है। इसलिए उन्होंने भी अपनी एक शर्त रख दी। उन्होंने कहा, "ठीक है, लेकिन आप बिना हर श्लोक का अर्थ समझे उसे नहीं लिखेंगे।" गणेश जी इस बात पर सहमत हो गए।]
और फिर चुना गया अक्षय तृतीया का दिन
अब सवाल था कि इतने बड़े और पवित्र ग्रंथ को लिखने की शुरुआत कब की जाए। इसके लिए अक्षय तृतीया से बेहतर कोई दिन हो ही नहीं सकता था।"अक्षय" का मतलब होता है जिसका कभी क्षय न हो, यानी जो कभी खत्म न हो। माना जाता है कि इस दिन शुरू किया गया कोई भी काम अनंत काल तक फलता-फूलता है और उसका पुण्य कभी कम नहीं होता।
इसीलिए वेद व्यास जी और गणेश जी ने इस शुभ दिन को चुना ताकि महाभारत की रचना का प्रभाव और उसका ज्ञान हमेशा बना रहे।
जब गणेश जी ने तोड़ दिया अपना दाँत
जैसे ही गणेश जी ने लिखना शुरू किया, वेद व्यास जी बोलने लगे। जब भी व्यास जी को थोड़ा आराम करना होता या सोचने का समय चाहिए होता, तो वे एक बहुत ही कठिन श्लोक बोल देते। गणेश जी को उसका अर्थ समझने में थोड़ा समय लगता और इसी बीच व्यास जी को अवकाश मिल जाता।
कहते हैं कि लिखते-लिखते गणेश जी की कलम टूट गई। पर शर्त के अनुसार वो रुक नहीं सकते थे। इसलिए उन्होंने तुरंत अपना एक दाँत तोड़ दिया और उसे स्याही में डुबोकर लिखना जारी रखा। उनके इसी त्याग और समर्पण की वजह से उन्हें "एकदंत" भी कहा जाता है।
इस तरह अक्षय तृतीया के शुभ दिन पर शुरू हुआ यह महान काम बिना रुके पूरा हुआ और हमें महाभारत के रूप में एक ऐसा ग्रंथ मिला जो आज भी हमें रास्ता दिखाता है।
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