शरिया कानून Vs भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम: लड़कियों को संपत्ति में कितना अधिकार, यहां जानें संपत्ति के नियम

शरिया कानून बनाम भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम: अगर कोई मुसलमान इस्लाम को नहीं मानता और शरिया कानून (मुस्लिम पर्सनल लॉ) के तहत नहीं आना चाहता तो क्या उसे भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम-1925 के प्रावधानों के तहत राहत मिलेगी या नहीं। यह सवाल एक मुस्लिम महिला ने सुप्रीम कोर्ट में उठाया है। उसका कहना है कि अगर वह शरिया कानून और इस्लाम को नहीं मानती तो क्या वह अपनी पैतृक संपत्ति पर अधिकार खो देगी या फिर उस पर भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम लागू होगा और उसे संपत्ति का अधिकार मिलेगा। केरल की 50 वर्षीय मुस्लिम महिला की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर विचार करने के लिए तैयार हो गया है कि नास्तिक मुसलमानों पर शरिया लागू होगा या नहीं।

आइए जानने की कोशिश करें कि शरिया कानून और भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम-1925 के तहत पैतृक संपत्ति में लड़के और लड़कियों को किस तरह के अधिकार प्राप्त हैं।

भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम-1925 का लाभ देने की मांग

सुप्रीम कोर्ट पहुंची महिला सफिया पीएम का कहना है कि वह शरिया कानून का पालन नहीं करना चाहती क्योंकि यह महिलाओं के खिलाफ है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से यह भी मांग की है कि उन्हें नास्तिक मुस्लिम घोषित किया जाए और भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम-1925 के प्रावधानों के अनुसार उन्हें कानून का लाभ लेने की अनुमति दी जाए।

महिला ने कहा है कि शरिया कानून के तहत अगर कोई व्यक्ति मुस्लिम धर्म को नहीं मानता है तो उसे समाज से निकाल दिया जाता है। अगर वह भी ऐसा करती है तो उसे अपने पिता की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं रहेगा।

शरिया कानून के तहत, किसी को विरासत तभी मिलती है जब वह मुसलमान हो

दरअसल, मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरिया) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 की धारा 3 के तहत अगर कोई मुस्लिम (पुरुष या महिला) वसीयत या परंपरा के मुताबिक अपने परिवार की संपत्ति पर अधिकार चाहता है तो उसे विहित प्राधिकारी से यह प्रमाण पत्र लाना होगा कि वह मुस्लिम है। इस एक्ट के मुताबिक, अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसके बेटे, बेटी, विधवा और माता-पिता को उसकी संपत्ति में हिस्सा दिया जाता है।

बेटे की आधी संपत्ति बेटियों को देने का प्रावधान

यह बेटियों के साथ भेदभाव को दर्शाता है और उन्हें बेटे की आधी संपत्ति देने का प्रावधान है। वहीं विधवा को संपत्ति का केवल छठा हिस्सा ही मिलता है। वैसे भी मुस्लिम परिवार में पैदा होने वाले बच्चे को जन्म से ही संपत्ति का अधिकार नहीं मिलता। इसके लिए सबसे जरूरी है कि व्यक्ति की मौत के बाद उसके वारिस उसका अंतिम संस्कार करें। साथ ही उसके सारे कर्ज चुकाएं। फिर संपत्ति का मूल्य या वसीयत तय की जाती है।

याचिका दायर करने वाली महिला ने अपनी याचिका में यह भी कहा है कि शरिया के मुताबिक कोई भी मुसलमान अपनी संपत्ति का एक तिहाई से ज़्यादा हिस्सा वसीयत में नहीं दे सकता। यानी पिता चाहे तो भी एक तिहाई से ज़्यादा संपत्ति उसे नहीं दे सकता। बाकी दो तिहाई संपत्ति उसके भाई को मिलेगी।

भारतीय उत्तराधिकार कानून में बेटे और बेटियों को कितना अधिकार है?

भारतीय उत्तराधिकार कानून-1925 एक धर्मनिरपेक्ष कानून है, जिसकी धारा 58 के अनुसार यह भारत में मुसलमानों पर लागू नहीं होता। आम तौर पर इस कानून के अनुसार बेटे और बेटियों को पैतृक संपत्ति में बराबर का अधिकार मिलता है। अगर पिता चाहे तो अपनी वसीयत भी बना सकता है। अगर वसीयत बन गई है तो संपत्ति का बंटवारा उसी के हिसाब से होता है।

इसीलिए सफ़िया के वकील ने कोर्ट में कहा है कि सफ़िया के पिता अपनी पूरी संपत्ति अपनी बेटी को देना चाहते हैं, लेकिन शरिया कानून के तहत वह अपने भाई से सिर्फ़ आधी संपत्ति ही ले सकती है। ऐसे में उन्हें भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम-1925 के तहत संपत्ति पर अधिकार दिए जाने चाहिए, ताकि उनकी मृत्यु के बाद उनकी बेटी को भी पूरी संपत्ति का अधिकार मिल सके। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई जुलाई 2024 में करेगा।