Share Market : इंफोसिस के 18,000 करोड़ के बायबैक का पूरा गणित, निवेशकों की जेब पर कैसे पड़ेगा ज्यादा टैक्स का बोझ?
News India Live, Digital Desk: देश की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी इंफोसिस (Infosys) एक बार फिर अपने निवेशकों को तोहफा देने जा रही है। कंपनी ने 18,000 करोड़ रुपये के शेयर बायबैक (Share Buyback) का ऐलान किया है। इस खबर से निवेशक तो खुश हैं, लेकिन इस खुशी में एक पेंच छिपा है - और वह है 'टैक्स'।
नए टैक्स नियमों के कारण इस बार निवेशकों को बायबैक से होने वाले मुनाफे पर पहले के मुकाबले ज्यादा टैक्स चुकाना पड़ सकता है, भले ही यह टैक्स सीधे उनकी जेब से न जाए। चलिए, इस पूरे मामले को आसान भाषा में समझते हैं।
सबसे पहले जानें, क्या होता है शेयर बायबैक?
जब कोई कंपनी बाजार से अपने ही शेयर वापस खरीदती है, तो उसे शेयर बायबैक कहते हैं। कंपनियां ऐसा इसलिए करती हैं ताकि बाजार में मौजूद शेयरों की संख्या कम हो जाए, जिससे प्रति शेयर आय (EPS) बढ़ जाती है और शेयर की कीमत को सपोर्ट मिलता है। इंफोसिस 1,850 रुपये प्रति शेयर के अधिकतम मूल्य पर 'ओपन मार्केट रूट' से यह बायबैक करेगी।
तो फिर टैक्स का पेंच कहां है?
पेंच 2019 में आए एक नए नियम में है।
- पुराना नियम (2019 से पहले): जब कोई कंपनी बायबैक करती थी, तो निवेशकों को हुए मुनाफे पर 'कैपिटल गेन्स टैक्स' (Capital Gains Tax) देना पड़ता था। अगर आपने शेयर एक साल से ज्यादा रखकर बेचा तो लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) टैक्स लगता था और अगर एक साल से पहले बेचा तो शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स (STCG) टैक्स। यह टैक्स निवेशक अपनी आय के अनुसार खुद चुकाते थे।
- नया नियम (5 जुलाई 2019 के बाद): अब नियम बदल गए हैं। अब निवेशक को कोई टैक्स नहीं देना होता। उनकी जगह, कंपनी को ही पूरे बायबैक अमाउंट पर 'बायबैक डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स' (BDT) देना पड़ता है। यह टैक्स लगभग 23.3% होता है।
निवेशकों पर कैसे पड़ा असर?
देखने में तो यह अच्छा लगता है कि निवेशक को सीधे कोई टैक्स नहीं देना है और बायबैक से हुई कमाई उनके हाथ में टैक्स-फ्री होगी। लेकिन असली कहानी कुछ और है।
पहले सिर्फ उन्हीं निवेशकों को टैक्स देना पड़ता था, जो बायबैक में अपने शेयर बेचते थे और मुनाफा कमाते थे। लेकिन अब, कंपनी को पूरे 18,000 करोड़ रुपये पर टैक्स देना होगा। यह टैक्स कंपनी अपने मुनाफे से ही चुकाएगी। इसका सीधा मतलब यह है कि कंपनी का मुनाफा कम होगा, जिसका असर आखिरकार सभी शेयरधारकों पर पड़ेगा।
इसे एक उदाहरण से समझें:
मान लीजिए, इंफोसिस ने 100 रुपये में शेयर जारी किया था और अब 1850 रुपये में वापस खरीद रही है। तो, प्रति शेयर 1750 रुपये का मुनाफा हुआ। नए नियम के तहत, कंपनी को इस 1750 रुपये पर लगभग 23.3% का टैक्स सरकार को देना होगा। यह टैक्स कंपनी चुकाएगी, लेकिन यह पैसा आखिरकार शेयरधारकों के मुनाफे का ही एक हिस्सा है।
पहले निवेशक अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से 10% या 15% टैक्स देते थे, लेकिन अब फ्लैट 23.3% टैक्स लग रहा है, जो कि कंपनी चुका रही है। इससे प्रभावी रूप से निवेशकों के हाथ में आने वाला रिटर्न कम हो जाता है। यही वजह है कि भले ही आपके हाथ में आने वाला पैसा टैक्स-फ्री है, लेकिन ओवरऑल टैक्स का बोझ पहले से बढ़ गया है।
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