भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने कंपनियों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पेश किया है। इस प्रस्ताव के तहत, यदि कोई कंपनी अपने शेयरों की फेस वैल्यू को स्प्लिट या कंसॉलिडेट करती है, तो सभी नए शेयर केवल डीमैट मोड में जारी किए जाएंगे। सेबी ने कॉर्पोरेट पुनर्गठन के मामलों में भी यही प्रक्रिया अपनाने का सुझाव दिया है।
उद्देश्य: फिजिकल सर्टिफिकेट्स से जुड़े जोखिम खत्म करना
सेबी का यह कदम फिजिकल सर्टिफिकेट्स से जुड़े जोखिमों को खत्म करने की दिशा में है।
मुख्य जोखिम:
- सर्टिफिकेट का खो जाना।
- चोरी।
- क्षति या खराब होना।
- धोखाधड़ी की संभावना।
सेबी ने एक कंसल्टेशन पेपर जारी किया है, जिसमें आम जनता से 4 फरवरी तक अपनी राय और टिप्पणियां मांगी गई हैं।
डीमैट खाता या सस्पेंस एस्क्रो खाता: नई व्यवस्था
TOI की एक रिपोर्ट के अनुसार, सेबी लंबे समय से निवेशकों को डीमैट मोड में शेयर रखने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।
- वर्तमान समस्या:
- कुछ निवेशक अभी भी अपने शेयर भौतिक रूप में रखते हैं।
- इससे पुनर्गठन या स्प्लिट के दौरान डीमैट शेयर जारी करने में समस्या होती है।
- नया प्रस्ताव:
- कंपनियों को ऐसे निवेशकों के लिए अलग डीमैट खाता या सस्पेंस एस्क्रो खाता बनाना होगा।
- इन खातों में निवेशकों के नाम रिकॉर्ड रहेंगे।
डीमैट फॉर्म में शेयर रखने के फायदे
1. धोखाधड़ी से बचाव:
- डीमैट मोड में शेयर रखने से फिजिकल सर्टिफिकेट्स से जुड़े फ्रॉड की संभावना खत्म हो जाती है।
2. फिजिकल डैमेज से सुरक्षा:
- सर्टिफिकेट्स खराब या गुम नहीं होते।
3. आसान ट्रांसफर:
- डीमैट शेयरों को ट्रांसफर करना फिजिकल शेयरों की तुलना में कहीं अधिक सुविधाजनक है।
4. पारदर्शिता:
- सभी लेन-देन SEBI की निगरानी में होते हैं।
5. कम लागत:
- डीमैट मोड में शेयर रखने से कानूनी विवाद और अन्य संबंधित खर्चों में कमी आती है।
सेबी का उद्देश्य: नए फिजिकल सर्टिफिकेट्स पर रोक
डीमैटरियलाइजेशन की दिशा में तेजी लाने और नई फिजिकल सिक्योरिटीज को जारी होने से रोकने के लिए:
- सेबी ने सुझाव दिया:
- मौजूदा फिजिकल प्रमाणपत्रों को डीमैट फॉर्म में बदला जाना चाहिए।
- इससे नए भौतिक प्रमाणपत्रों का निर्माण रोका जा सकेगा।