सेबी ने डेरेवेटिव सेगमेंट के लिए नियमों में किया बदलाव

नई दिल्ली, 02 सितंबर (हि.स.)। मार्केट रेगुलेटर सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) ने डेरिवेटिव सेगमेंट में स्टॉक्स की एंट्री और एग्जिट के नियमों में बदलाव कर दिया है। सेबी की ओर से किया गया ये बदलाव तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है।

सेबी ने मीडियन क्वार्टर सिग्मा ऑर्डर साइज (एमक्यूएसओएस) को बढ़ा कर 3 गुना कर दिया है। इसी तरह मिनिमम मार्केट वाइड पोजिशन लिमिट (एमडब्लूपीएल) को बढ़ा कर 3 गुना और एवरेज डेली डिलीवरी वैल्यू (एडीडीवी) को बढ़ा कर 3.5 गुना कर दिया गया है। सेबी ने ये कदम इसलिए उठाया है, जिससे केवल हाई क्वालिटी वाले स्टॉक्स ही डेरिवेटिव सेगमेंट में ट्रेडिंग कर सकें। दरअसल, एमक्यूएसओएस किसी भी स्टॉक की लिक्विडिटी का संकेत होता है। इसकी संख्या जितनी अधिक होती है, स्टॉक्स के कीमत में कृत्रिम तरीके से हेर फेर करना उतना ही कठिन हो जाता है।

नए नियमों के मुताबिक एमक्यूएसओएस को 25 लाख रुपये से बढ़ा कर 75 लाख रुपये कर दिया गया है। इसी तरह एमडब्लूपीएल को 500 करोड़ रुपये से बढ़ा कर 1,500 करोड़ रुपये कर दिया गया है। इससे ये सुनिश्चित करना संभव हो सकेगा कि मार्केट में ज्यादा पोजीशन वाले स्टॉक्स ही डेरिवेटिव सेगमेंट में बने रहें।

सेबी ओर से कहा गया है कि स्टॉक्स की एंट्री और एग्जिट के इन नियमों की समीक्षा 2018 के बाद पहली बार की गई है। 2018 के बाद मार्केट के अलग-अलग मापदंडों में हुए क्रियात्मक और प्रयोगात्मक परिवर्तनों को देखते हुए इन नियमों में बदलाव करने का फैसला किया गया है। इन बदलावों के तहत अब जिन स्टॉक्स की एवरेज डेली डिलीवरी वैल्यू 35 करोड़ रुपये से कम होगी उन्हें डेरिवेटिव सेगमेंट से बाहर कर दिया जाएगा। इसके पहले एवरेज डेली डिलीवरी वैल्यू की सीमा 10 करोड़ रुपये थी।

सेबी की ओर से बताया गया है कि यदि कोई स्टॉक लगातार 3 महीने तक एमक्यूएसओएस, एमडब्लूपीएल और एडीडीवी में किए गए बदलाव के मुताबिक मानकों को पूरा नहीं कर पता है, तो वो खुद ही डेरिवेटिव सेगमेंट से बाहर हो जाएगा। ऐसे स्टॉक्स पर कोई नया कॉन्ट्रैक्ट जारी नहीं किया जा सकेगा। हालांकि एग्जिट के समय भी उन कॉन्ट्रैक्ट्स में तब तक ट्रेडिंग हो सकेगी, जब तक कि कॉन्ट्रैक्ट एक्सपायर नहीं हो जाते हैं। इन नियमों का अनुपालन करने के लिए सेबी ने सक्सेस फ्रेमवर्क के नाम से एक नया प्रोडक्ट भी लॉन्च किया है, जो यह तय करेगा कि किस स्टॉक को डेरिवेटिव सेगमेंट से बाहर किया जाए।