Scientific Study : केवल एक ही लिंग के बच्चे होने का रहस्य खुला हार्वर्ड रिसर्च ने बताया बड़ा कारण

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News India Live, Digital Desk: Scientific Study :  दुनियाभर में अक्सर ऐसे परिवार देखने को मिलते हैं जहाँ लगातार सिर्फ बेटे या फिर सिर्फ बेटियां ही जन्म लेती हैं, भले ही संतान की संख्या कितनी भी हो जाए। यह स्थिति कई लोगों के मन में उत्सुकता पैदा करती है, तो कई इसे किस्मत, ग्रहों के प्रभाव या किसी अन्य कारण से जोड़कर देखते हैं। दशकों से चली आ रही इन तमाम भ्रांतियों और उत्सुकता को शांत करने के लिए एक महत्वपूर्ण शोध ने बड़ा खुलासा किया है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए एक अध्ययन जिसका उल्लेख मूल लेख में किया गया है) के अनुसार, इसका कारण किसी व्यक्ति के भीतर एक विशिष्ट "बेटा पैदा करने वाला जीन" या "बेटी पैदा करने वाला जीन" नहीं है, बल्कि यह विशुद्ध रूप से एक प्राकृतिक गणितीय संयोग है।

शोध के अनुसार, मानव प्रजनन प्रणाली में बच्चे का लिंग गुणसूत्रों के एक प्राकृतिक संयोजन द्वारा निर्धारित होता है जो माता-पिता से आते हैं। महिला के शरीर में केवल XX गुणसूत्र होते हैं, जबकि पुरुष में XY गुणसूत्र होते हैं। बच्चे का लिंग पिता से आने वाले गुणसूत्र पर निर्भर करता है: यदि पिता का X गुणसूत्र अंडे के साथ जुड़ता है तो बच्ची (XX) का जन्म होता है, और यदि Y गुणसूत्र जुड़ता है तो बच्चे (XY) का जन्म होता है। प्रत्येक गर्भधारण के दौरान लड़के या लड़की के होने की संभावना लगभग 50-50 प्रतिशत होती है।

यह अध्ययन जोर देता है कि बच्चे का लिंग निर्धारण हर बार एक नई और स्वतंत्र घटना है, ठीक उसी तरह जैसे सिक्का उछालने पर हर बार चित या पट आने की संभावना आधी-आधी होती है। भले ही आप एक सिक्का 10 बार उछालें और आपको लगातार 10 बार 'चित' मिले, इसका यह मतलब नहीं है कि सिक्के में कोई खराबी है या वह हमेशा चित ही देगा। यह केवल एक संभावित सांख्यिकीय परिणाम है। ठीक इसी प्रकार, यदि किसी परिवार में चार या पांच बच्चे हैं और वे सभी एक ही लिंग के हैं, तो यह उस परिवार में लगातार बनी रहने वाली कोई विशिष्ट "आनुवंशिक प्रवृत्ति" नहीं है जो केवल एक लिंग की संतान पैदा करती हो, बल्कि यह प्राकृतिक संभावना और यादृच्छिकता रैंडमनेस  का ही एक परिणाम है।

कुल मिलाकर, हार्वर्ड का यह शोध यह स्पष्ट करता है कि कुछ परिवारों में सिर्फ लड़के या सिर्फ लड़कियों का जन्म होना किसी दैवीय हस्तक्षेप या जैविक असामान्यता का संकेत नहीं है, बल्कि यह विशुद्ध रूप से हर गर्भावस्था के दौरान होने वाली गुणसूत्रों की यादृच्छिक संक्रिया का ही एक सांख्यिकीय परिणाम है। यह एक वैज्ञानिक तर्क है जो समाज में लिंग भेद और ऐसी अवधारणाओं से जुड़ी गलतफहमियों को दूर करने में मदद करता है।

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