संकष्टी चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित एक विशेष दिन है, जिन्हें विघ्नों का नाश करने वाला और बुद्धि का देवता माना जाता है। इस दिन भक्तगण पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान गणेश की पूजा करते हैं ताकि उनके जीवन की सभी बाधाएं और समस्याएं दूर हो जाएं।
संकष्टी चतुर्थी एक शुभ मुहूर्त है
अप्रैल माह में विकट संकष्टी चतुर्थी 16 अप्रैल, बुधवार को दोपहर 1.16 बजे से शुरू होगी और 17 अप्रैल को दोपहर 3.23 बजे समाप्त होगी। उदयातिथि के अनुसार, संकष्टी चतुर्थी का व्रत 16 अप्रैल, बुधवार को रखा जाएगा।
यदि आप इस दिन व्रत कर रहे हैं, तो यह बहुत अच्छा है, लेकिन यदि किसी कारण से आप ऐसा करने में सक्षम नहीं हैं, तो आप कुछ विशेष उपाय करके और अपनी इच्छाओं के लिए विशेष पूजा-अर्चना करके अपने जीवन की सभी बाधाओं को दूर कर सकते हैं। जानिए संकष्टी चतुर्थी पर क्या उपाय करने चाहिए।
संकष्टी चतुर्थी शुभ योग
मैत्रेय योग
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मैत्रेय योग बन रहा है। यह योग 16 अप्रैल को रात्रि 8:50 बजे से शुरू होगा। यह रात्रि 11:09 बजे समाप्त होगा। इस योग में भगवान गणेश की पूजा करना अच्छा रहेगा।
अमृत सिद्धि योग
कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को अमृत और सर्वार्थ सिद्धि योग पूरे दिन रहेगा। इसके साथ ही शिववास योग का संयोग भी बन रहा है। दोपहर 1 बजकर 16 मिनट पर शिववास योग बन रहा है। इन योगों में भगवान गणेश की पूजा करने से भक्त को जीवन में सभी प्रकार के सुख प्राप्त होंगे।
संकष्टी चतुर्थी के दिन करें ये उपाय
संकष्टी चतुर्थी की शाम को पीले वस्त्र धारण करें और गणेश जी के सामने बैठें।
उनके सामने चौमुखा घी का दीपक जलाएं।
भगवान गणेश को एक-एक करके लड्डू चढ़ाएं।
गणेश जी को एक लड्डू चढ़ाते समय हर बार “गं” बोलें।
इसके बाद भगवान गणेश से बाधा दूर करने और अपनी मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना करें।
एक लड्डू स्वयं भी खायें और दूसरों को भी खिलायें।
संकष्टी चतुर्थी के नियम
सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद भगवान गणेश की मूर्ति या फोटो रखें।
फूल, धूप, दीप, दूर्वा, नारियल और मोदक चढ़ाएं।
“ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र का जाप करें या गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करें।
उपवास के दौरान केवल फल, दूध या पानी का सेवन किया जाता है। कुछ लोग निर्जल उपवास भी करते हैं।
नकारात्मक विचारों, क्रोध और झगड़ों से बचें।
शाम को चंद्रोदय के बाद चंद्रमा और भगवान गणेश की पूजा करके व्रत खोलें।
यह व्रत शरीर और आत्मा की शुद्धि के लिए है और ईश्वर से जुड़ने का अवसर है।