सेनेटरी पैड: क्या सेनेटरी पैड सचमुच 800 साल में खराब हो जाता है? जानिए कितना फैलता है प्रदूषण

Biodegradable Sanitary Pads 8745

युवावस्था के बाद हर लड़की और महिला को हर महीने पीरियड्स से गुजरना पड़ता है। ये एक ऐसा विषय है जिस पर अब खुलकर चर्चा हो रही है. सालों से चली आ रही महिलाओं की इस समस्या का फायदा बाजार ने उठाया है। बाजार में सैनिटरी पैड बेचने वाली कंपनियों की कोई कमी नहीं है। कुछ कंपनियाँ दाग न लगने का दावा करती हैं और कुछ लंबे समय तक टिके रहने का वादा करती हैं। ऐसे में क्या आप जानते हैं कि पीरियड्स के दौरान महिलाओं द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले ये सैनिटरी पैड कितने खतरनाक हैं? आइए जानते हैं आज की रिपोर्ट में…

देश में हर साल इतना सैनिटरी पैड कचरा पैदा होता है

वॉटरएड इंडिया और मेंस्ट्रुअल हाइजीन एलायंस ऑफ इंडिया (2018) के अनुसार, भारत में 336 मिलियन महिलाएं हैं जो मासिक धर्म का अनुभव करती हैं। अगर हमारे देश में सैनिटरी पैड की बर्बादी की बात करें तो देश में हर साल 1200 करोड़ सैनिटरी पैड बनते हैं जो कि लगभग 1,13,000 टन है। ये कचरा अब पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी समस्या बन गया है. सिर्फ सैनिटरी पैड ही नहीं बल्कि बेबी डायपर भी अब एक बड़ी समस्या बनकर उभर रहे हैं।

एक सेनेटरी पैड 800 साल में ख़त्म हो जाता है?

सैनिटरी पैड बनाने वाली नामी-गिरामी कंपनियां इनमें बड़े पैमाने पर प्लास्टिक का इस्तेमाल कर रही हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट 2018-19 के अनुसार, सैनिटरी पैड में 90% प्लास्टिक का उपयोग किया जाता है, जिससे भारत में हर साल 3.3 लाख टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है।

साल 2021 में भारत में सैनिटरी पैड को लेकर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। ‘टॉक्सिक लिंक्स’ नामक पर्यावरण समूह की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल 1230 करोड़ सेनेटरी पैड कूड़ेदान में फेंके गए। ध्यान देने योग्य बात यह है कि एक सैनिटरी पैड चार प्लास्टिक बैगों जितना ही पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है। इसके साथ ही अगर इन्हें मिट्टी में दबा दिया जाए तो ये मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीवों को नष्ट करने का काम करते हैं, जिससे हरियाली पर भी बुरा असर पड़ता है।

सैनिटरी पैड के जीवन के बारे में बात करें तो अधिकांश सैनिटरी पैड गोंद और सुपर अवशोषक पॉलिमर (एसएपी) से बने होते हैं, इन्हें विघटित होने में 500 से 800 साल लग सकते हैं।

क्या सैनिटरी पैड से हो सकता है कैंसर?

भारत में जारी ‘मासिक धर्म अपशिष्ट 2022’ रिपोर्ट के अनुसार, सैनिटरी नैपकिन में थैलेट्स नामक रसायन का उपयोग किया जाता है। यह रसायन खतरनाक बीमारी कैंसर का कारण बन सकता है। इसके अलावा इससे बांझपन, पीसीओडी और एंडोमेट्रियोसिस जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। इससे लकवा के साथ-साथ याददाश्त भी कमजोर हो सकती है।