संभल में 1978 में हुए सांप्रदायिक दंगे की शुरुआत एक कॉलेज सदस्यता विवाद से हुई थी। मंजर अली ने अपने साथियों के साथ दंगा भड़काने की साजिश रची, जिसका नतीजा हिंसा, लूटपाट, आगजनी और फायरिंग के रूप में सामने आया। इस दंगे में 10-12 हिंदू नागरिकों की मौत हुई और शहर में कई महीनों तक कर्फ्यू लगा रहा।
सदस्यता विवाद से उपजा तनाव
संभल में स्थित महात्मा गांधी मैमोरियल डिग्री कॉलेज में सदस्यता को लेकर विवाद शुरू हुआ। कॉलेज के नियमों के अनुसार, 10,000 रुपये दान देने वाले व्यक्ति को आजीवन सदस्यता दी जाती थी। स्थानीय ट्रक यूनियन ने कॉलेज के लिए 10,000 रुपये का चेक दिया, जिसकी रसीद मंजर शफी के नाम पर थी। मंजर शफी कॉलेज प्रबंध समिति का सदस्य बनना चाहते थे, लेकिन ट्रक यूनियन के पदाधिकारियों ने किसी को अधिकृत न करने की बात कही। इसके चलते कॉलेज प्रबंध समिति के उपाध्यक्ष और एसडीएम ने मंजर शफी को सदस्यता देने से इनकार कर दिया।
होली के दौरान बढ़ा विवाद
25 मार्च 1978 को होली के दौरान दो स्थानों पर विवाद हुआ। एक जगह होलिका दहन के स्थान पर एक मुस्लिम दुकानदार ने खोखा रख दिया था, जिसे हटा दिया गया। दूसरी जगह एक चबूतरा बनाया गया था। इन घटनाओं से दोनों समुदायों के बीच तनाव बढ़ गया।
कॉलेज कार्यक्रम में उपाधियों पर विवाद
28 मार्च 1978 को महात्मा गांधी मैमोरियल कॉलेज में एक कार्यक्रम आयोजित होना था, जिसमें विद्यार्थियों और शिक्षकों को उपाधियां दी जानी थीं। कुछ मुस्लिम छात्राओं ने उपाधियों को आपत्तिजनक बताते हुए कार्यक्रम रोकने की मांग की। कॉलेज के प्राचार्य और विद्यार्थी संघ के बीच विवाद बढ़ गया। प्राचार्य ने पांच छात्रों को निलंबित कर दिया, जिससे हालात और बिगड़ गए।
दंगे की शुरुआत
29 मार्च 1978 को नगरपालिका कर्मचारियों और रिक्शाचालकों में वेतन को लेकर रोष था। इसी बीच, रंगनलाल सहदेव वाल्मीकि ने तहसील पर प्रदर्शन शुरू कर दिया। मंजर शफी अपने समर्थकों के साथ इस प्रदर्शन में शामिल हो गए और उत्तेजक नारे लगाने लगे। बाजार में जबरन दुकानें बंद कराने की कोशिश हुई, जिससे हालात बेकाबू हो गए।
लूटपाट और आगजनी
बाजार में प्रमोद पान वाले और पंजाबी समुदाय के व्यापारियों ने दुकान बंद करने का विरोध किया। इससे झड़पें शुरू हो गईं। सब्जी मंडी, सर्राफा बाजार, गंज, नखासा तिराहा समेत कई इलाकों में लूटपाट और आगजनी हुई। अफवाहें फैलाई गईं कि मंजर शफी मारे गए हैं और मस्जिदों को तोड़ा जा रहा है।
कर्फ्यू और पुलिस कार्रवाई
स्थिति बेकाबू होने पर प्रशासन ने तुरंत कर्फ्यू लगाने का आदेश दिया। 29 मार्च 1978 से 20 मई 1978 तक कर्फ्यू लागू रहा। दंगे के दौरान कुल 169 मामले दर्ज हुए। कई लोगों को गिरफ्तार किया गया, और पूरे शहर में तनाव की स्थिति बनी रही।