सफ़र-ए-शहादत: मीठे पकवान नहीं बनते, सुबह सोती है संगत ताकि ठंडी मीनार का प्रकोप महसूस किया जा सके

26 12 2024 2414155151 9439019

वर्ष 1704 में पोह की कठोर ठंड में माता गुजरी जी को उनके पोते, साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह के साथ ठंडे बुर्ज में दो कठिन रातें गुजारनी पड़ीं। इन कठिन परिस्थितियों में उन्होंने जिस साहस और धैर्य का परिचय दिया, वह आज भी संगत के लिए प्रेरणा का स्रोत है। इस कठिनाई का अनुभव करने और उनके बलिदान को याद करने के लिए शहीदी पखवाड़े के दौरान संगत विशेष रूप से रजाई, बिस्तर या तख्त छोड़कर जमीन पर पुआल बिछाकर सोती है। इस दौरान लोग कम कपड़ों में सोते हैं और साधारण जीवन जीते हैं।

शहीदी पखवाड़े के दौरान संगत घरों में मिठाई बनाना या किसी भी प्रकार के शुभ कार्य करना बंद कर देती है। यह समय बलिदान और सादगी के महत्व को समझने और श्रद्धांजलि अर्पित करने का होता है।

सफ़र-ए-शहादत और नगर कीर्तन

सफ़र-ए-शहादत के दौरान कई नगर कीर्तन आयोजित किए जाते हैं। इनमें तीन प्रमुख यात्राएँ हैं, जो गुरु गोबिंद सिंह जी, माता गुजरी जी, और साहिबजादों के ऐतिहासिक स्थलों को जोड़ती हैं। इनमें से एक यात्रा चमकौर साहिब से झाड़ साहिब तक की होती है।

यह यात्रा विशेष रूप से उस मार्ग को याद करती है जहाँ गुरु साहिब का परिवार अलग हो गया था। सुबह 4 बजे शुरू होने वाली यह यात्रा लगभग एक किलोमीटर लंबी होती है, जिसमें बड़ी संख्या में संगत शामिल होती है। श्रद्धालु इस यात्रा को नंगे पैर करते हैं, जिससे उनके समर्पण और बलिदान के प्रति उनकी आस्था झलकती है।

संगत का यह निष्ठापूर्ण योगदान बलिदान, तप और साहस की उस गौरवशाली गाथा को पुनः जीवंत करता है, जो हर सिख के दिल में सम्मान और प्रेरणा का स्थान रखती है।