प्रयागराज, 22 मई (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा कि व्यक्ति को अपने जीवन को स्वतंत्र रूप से जीने के अधिकार में अपने साथी को चुनना भी शामिल है। हाइकोर्ट ने हाल ही में ट्रांस महिला के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले व्यक्ति को पुलिस सुरक्षा देने का आदेश दिया।
यह आदेश जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने पारित किया। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं ट्रांस महिला और पुरुष द्वारा दायर सुरक्षा याचिका का निपटारा करते हुए यह टिप्पणी की जो वर्तमान में लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं। कोर्ट ने कहा “मानव की मूल संरचना से उत्पन्न होने वाली धारणा और व्यक्तित्व की विविधता अलग-अलग मनुष्यों को अलग-अलग विकल्प चुनने के लिए प्रेरित करती है। भले ही वे समान परिस्थितियों में हों। इसलिए स्वतंत्र चुनाव का अधिकार स्वतंत्रता की आत्मा है और किसी भी स्वतंत्र समाज की सबसे प्रिय और प्रमुख विशेषता है।”
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में यह कहते हुए याचिका दायर की कि ट्रांस जेंडर पहचान के कारण उनका जीवन, स्वतंत्रता, सम्मान और सुरक्षा खतरे में है। अपनी याचिका में याचिकाकर्ताओं ने विशेष रूप से पुरुष के पिता पर ट्रांस जेंडर के खिलाफ मौखिक और शारीरिक हमला करने का आरोप लगाया।
इसे देखते हुए याचिका में न्यायालय से पुलिस सुरक्षा की मांग की गई थी। शुरू में न्यायालय ने कहा कि हमारा संविधान उस स्वतंत्रता को संरक्षित करने का प्रयास करता है। न्यायालय ने यह भी कहा कि मनुष्य होने में स्वाभाविक रूप से व्यक्तित्व शामिल होता है और उसे बढ़ावा मिलता है, चाहे वह शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक या अन्यथा हो और यह कि संवैधानिक लोकतंत्र किसी भी मानव समाज में उत्पन्न होने वाली विविध व्यक्तित्व को संरक्षित और सक्रिय रूप से बढ़ावा देने का वादा करता है।
न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि जब कोई समाज अपने सदस्यों को मौजूदा कानूनों की सीमाओं के भीतर अपने व्यक्तित्व का दावा करने से रोकता है तो यह अपने स्वयं के विकास की प्रक्रिया को बाधित करता है।
अदालत ने सुरक्षात्मक परमादेश जारी किया और कहा कि कोई भी याचिका कर्ताओं या उनकी सम्पत्तियों को शारीरिक या अन्यथा नुकसान नहीं पहुंचा सकता है, क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने एक साथ रहने का फैसला किया है। कोर्ट ने आदेश में किसी के नाम का उल्लेख नहीं किया।