नैनीताल, 04 जुलाई (हि.स.)। उत्तराखंड हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से बिना न्याय विभाग की अनुमति लिये शासनादेश के विरुद्ध जाकर हाई कोर्ट में कुछ स्पेशल मामलों में सरकार की तरफ से प्रभावी पैरवी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से स्पेशल काउंसिल बुलाने के मामले में जवाब तलब किया है।
ज्ञातव्य है कि सुप्रीम कोर्ट से काउंसिल बुलाने पर उन्हें प्रत्येक सुनवाई के लिए 10 लाख रुपये दिए जाने की बात कही गई थी। इसी मामले को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा है कि याचिकाकर्ता के विरुद्ध जो कोई आरोप आप लगा रहे हैं, उसकी रिपोर्ट दस दिन के भीतर कोर्ट में पेश करें।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा है कि वे भी दस दिन के भीतर कोर्ट को बताएं कि वे कितना आयकर देते हैं और अभी तक उनके द्वारा कितने सामाजिक कार्य किए गए हैं। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए दस दिन बाद की तिथि नियत की है।
आज हुई सुनवाई पर महाधिवक्ता की तरफ से कहा गया कि यह जनहित याचिका निरस्त करने योग्य है, क्योंकि इसमें जो पक्षकार बनाए गए हैं, वे वर्तमान में सीएम व मुख्य स्थायी अधिवक्ता हैं। उनका इससे कोई लेना देना नहीं है। इसलिए जनहित याचिका से उनके नाम हटाये जायें और जनहित याचिका को निरस्त किया जाए।
इसका विरोध करते हुए याचिकाकर्ता भुवन चन्द्र पोखरिया ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि विपक्षियों को इस जनहित याचिका में इसलिए पक्षकार बनाया गया कि इन्होंने स्पेशल काउंसिल नियुक्त के करने के लिए न तो राज्य के चीफ सेकेट्री से और न ही न्याय अनुभाग से अनुमति ली। एक केस में स्पेशल काउंसिल नियुक्त करके कई लाख का भुगतान कर दिया गया, जिसकी अनुमति शासनादेश नहीं देता। इसलिए इसकी जांच कराई जाए। उनके द्वारा जो आरोप लगाए गए हैं, वे सब जांच योग्य हैं। याचिका में कहा गया है कि जो आरोप उन पर लगाए जा रहे हैं, उसका प्रमाण वे पहले से ही कोर्ट में प्रस्तुत कर चुके हैं। याचिकाकर्ता ने कहा कि अगर वे इसमें दोषी पाए जाते हैं तो उन्हें कोर्ट से ही जेल भेजा जाये।
मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी एवं न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। याचिका में सीएम पुष्कर सिंह धामी व हाई कोर्ट में मुख्य स्थाई अधिवक्ता चंद्र शेखर रावत को भी पक्षकार बनाया गया है।