संग्रहालय संरक्षण और प्रबंधन विषय पर बेबिनार के माध्यम से शोध पत्र प्रस्तुत

सहरसा,20 मई (हि.स.)। वैदेही कला संग्रहालय के तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस की शृंखला कार्यक्रम में “भारतीय ज्ञान परम्परा में संग्रहालय ” विषय पर वेबनार का आयोजन सोमवार को किया गया। वेबनार के मुख्य वक्ता के रूप में संस्कृति एवं संग्रहालय विद प्रोफेसर ओम प्रकाश भारती ने कहा संग्रहालय पूर्वजों की स्मृतियों और ज्ञान का खजाना तथा हमारी परंपराओं का भविष्य है।भारत की प्रवृत्ति संचयन की रही है। पश्चिम का दावा है कि संग्रहालय अंग्रेजी में म्युजियम का विकास सबसे पहले यूनान में हुआ।संग्रहालय एक सामाजिक संस्थान है जो कलात्मक, सांस्कृतिक, नया वैज्ञानिक महत्व की कृतियों और अन्य वस्तुओं के संग्रह की देखभाल और प्रदर्शन करता है।

भारतीय सन्दर्भ में देखें तो ईसा से हजार वर्ष पूर्व भीमबेट का में मानव निर्मित चित्रों को प्रदर्शित किया गया है।ये चित्र गहरे लाल रंगों से इस तरह उकेरे गए हैं, जैसे उस समय के मानव इसे देखने आते थे।आज भी इन चित्रों की झलक भील और गोंड चित्रों में देखे जा सकते हैं।भारतीय ज्ञान परम्परा के अनुरूप इसे विश्व का प्रमथ संग्रहालय कहा जा सकता है।सिंधु घाटी सभ्यता में हमें अन्य समकालिक सभ्यताओं की कलाकृतियों की प्राप्ति से यह लक्षित होता है कि कलाप्रेमी सिन्धुवासी इन कलाकृतियों को घरों में सजाते और संरक्षित करते थे।निश्चय ही इन सभी कलाकृतियों को नगर स्तर भी संरक्षित और प्रदर्शित किया जाता होगा।

नालंदा और विक्रमशिला 5 वीं सदी विश्वविद्यालय में विशाल पुस्तकालय और पांडुलिपि भवन हुआ करता था।केरल के ”कूथामलंब” नौवीं सदी से कला वस्तुओं को संरक्षित करने की परम्परा है।असम के सत्रों में सोलहवीं सदी से कला वस्तुओं को संरक्षित रखा गया है। इस तरह भारतीय ज्ञान परम्परा के अनुसार भारत में संग्रहालय की प्राचीनतम परम्परा है। आवश्यकता है इस विषय को लेकर गहन शोध हो और इसे प्रकाश में लाया जाय।