फर्जी सुप्रीम कोर्ट फैसलों का हवाला देकर याचिका खारिज करने वाले जज पर जांच की सिफारिश

The hc bench of justice ns shekh

कर्नाटक में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां एक सिविल जज ने सुप्रीम कोर्ट के ऐसे फैसलों का हवाला देते हुए याचिका खारिज कर दी, जो वास्तव में दिए ही नहीं गए थे। इस खुलासे के बाद कर्नाटक हाईकोर्ट ने जज के खिलाफ जांच की सिफारिश की है।

क्या है पूरा मामला?

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, यह मामला एक सिविल पुनरीक्षण याचिका से जुड़ा है, जिसे सम्मान कैपिटल लिमिटेड और सम्मान फिनसर्व लिमिटेड ने दायर किया था। उन्होंने बेंगलुरु के सिविल जज द्वारा दिए गए आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

मामला मंत्री इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड और अन्य वादियों से जुड़ा है, जिन्होंने सम्मान कैपिटल से कर्ज लेने के लिए अपने शेयर्स गिरवी रखे थे। जब कर्जदारों ने भुगतान में डिफॉल्ट किया, तो उधारदाताओं ने सितंबर 2024 में शेयर्स ट्रांसफर करने का नोटिस जारी किया। इसके जवाब में मंत्री इंफ्रास्ट्रक्चर ने बेंगलुरु कमर्शियल कोर्ट में केस दर्ज किया और कर्जदाताओं की कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग की।

बाद में, 1 अक्टूबर 2024 को मंत्री इंफ्रास्ट्रक्चर ने अपना मुकदमा वापस लेकर इसे सिटी सिविल कोर्ट में फिर से दाखिल कर दिया। उधारदाताओं ने तर्क दिया कि यह मामला सिर्फ कमर्शियल कोर्ट में सुना जा सकता है, इसलिए इसे खारिज किया जाना चाहिए।

फर्जी फैसलों का हवाला देकर याचिका खारिज

बेंगलुरु के 9वें एडिशनल सिटी सिविल जज ने सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों—

  1. M/s. Jalan Trading Co. Pvt. Ltd. vs. Millenium Telecom Ltd

  2. M/s. Kvalrner Cemintation India Ltd. vs. M/s. Achil Builders Pvt. Ltd

—का हवाला देते हुए याचिका खारिज कर दी। लेकिन बाद में यह सामने आया कि ये फैसले कभी सुप्रीम कोर्ट ने दिए ही नहीं थे।

हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी

मार्च 2025 में जस्टिस देवदास ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा,
“सबसे अधिक परेशान करने वाली बात यह है कि सिविल कोर्ट के जज ने ऐसे फैसलों का हवाला दिया, जो वास्तव में अस्तित्व में ही नहीं हैं।”

उन्होंने मामले को कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के सामने पेश करने की सिफारिश की और कहा कि इस फैसले पर आगे जांच और कार्रवाई की आवश्यकता है।

आगे की कार्रवाई

हाईकोर्ट के निर्देश के बाद अब इस मामले की समीक्षा की जाएगी और संबंधित सिविल जज के खिलाफ उचित कार्रवाई की जा सकती है।