बांदा, 13 दिसंबर (हि.स.)। 13 दिसंबर 2001 को संसद भवन में हुए आतंकवादी हमले की याद आज भी कांपने पर मजबूर कर देती है। इस हमले में बांदा के भाजपा के वरिष्ठ नेता पुरुषोत्तम पांडे गंभीर रूप से घायल हो गए थे। इस दिन संसद की कार्रवाई हंगामे के कारण स्थगित कर दी गई थी, और जैसे ही पुरुषोत्तम पांडे अपने साथियों के साथ बाहर निकले, आतंकियों ने गोलियों और बम विस्फोट से संसद परिसर को दहला दिया। इस हमले में भाजपा नेता को कई गोलियां लगी थी। परिजनों ने आज उनका पुनर्जन्म मनाया।
पुरुषोत्तम पांडे और उनके साथी स्वर्गीय श्याम बिहारी मिश्रा, संतोष कुमार गुप्ता और सुदामा सिंह 12 दिसंबर को दिल्ली में योजना बना रहे थे कि अगले दिन संसद की कार्रवाई में भाग लेंगे। लेकिन किसी ने नहीं सोचा था कि यह दिन उनके जीवन का सबसे खतरनाक दिन साबित होगा।
हमले के दौरान, कानपुर के तत्कालीन सांसद स्वर्गीय श्याम बिहारी मिश्रा और संतोष गुप्ता अंदर सुरक्षित पहुंच गए, लेकिन पांडे बाहर रह गए। तभी एक मानव बम ने खुद को उड़ा लिया। इस विस्फोट और एके-56 की गोलियों की बौछार से पांडे गंभीर रूप से घायल हो गए। उन्हें तुरंत दिल्ली के डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां दो महीने तक उनका इलाज चला और उनकी जान बचाई गई।
हमले के बाद, उनके परिवार ने इसे उनका दूसरा जन्म माना और हर साल 13 दिसंबर को इस दिन को पुनर्जन्म दिवस के रूप में मनाते हैं। इस घटना को याद करते हुए पांडे आज भी सिहर उठते हैं।
हालांकि, वे यह सोचते हैं कि समाज सेवा और संगठन में सक्रियता की वजह से ही शायद उन्हें यह बड़ी सजा मिली। भाजपा ने इस घटना को केवल श्रद्धांजलि तक सीमित रखा, जबकि पांडे का मानना है कि हमले के पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए अधिक समर्थन और ध्यान दिया जाना चाहिए था।