श्रीगोंचा पूजा विधान में तीन रथों में रथारूड़ भगवान श्रीजगन्नाथ पहुंचे गुंडिचा मंदिर

जगदलपुर, 7 जुलाई (हि.स.)। रियासत कालीन ऐतिहासिक बस्तर गोंचा महापर्व में आज रविवार को श्रीगोंचा पूजा विधान में तीन रथों में भगवान श्रीजगन्नाथ, माता सुभद्रा व बलभद्र स्वामी के 22 विग्रहों को रथारूड़ कर श्रद्धालुओं के द्वारा हरी बोलो एवं श्रीजगन्नाथ की जय घोष के साथ रथ परिक्रमा आज देर शाम 5:30 बजे संपन्न किया गया। श्रद्धा उत्साह और भक्तिभाव के साथ हजारों श्रद्धालुओं ने तीनों रथों को खिंचते हुए रथ परिक्रमा मार्ग से होते हुए जनकपुरी गुडिचा मंदिर सिरहासार भवन पंहुची, जहां भगवान श्रीजगन्नाथ स्वामी माता सुभद्रा व बलभद्र स्वामी के विग्रहों को गुडिचा मंदिर में नौ दिन के लिए स्थपित किया गया। जगन्नाथपुरी की तरह बस्तर गोंचा महापर्व में भी रियासत कालीन परंपरा का निर्वहन करते हुए छेरा-बाहरा पूजा विधान बस्तर महाराजा कमलचंद भंजदेव के द्वारा संपन्न किया गया।

360 घर आरण्यक ब्राहम्ण समाज के अध्यक्ष ईश्वर खंबारी ने बताया कि इस विधान को पूरा करने के लिए जिस झाड़ू का उपयोग बस्तर राजपरिवार के द्वारा किया जाता है, वह चांदी से बनी है। इस झाड़ू का उपयोग केवल रथ यात्रा के दौरान ही किया जाता है। उन्होने बताया कि बस्तर गोंचा पर्व में भगवान जगन्नाथ स्वामी के सम्मान में तुपकी चलाने की अनोखी परंपरा बस्तर गोंचा पर्व को सबसे अलग स्थान दिलाता है। बस्तर गोंचा पर्व के लिए नानगूर क्षेत्र के ग्रामीणोंं द्वारा तुपकी बनाकर लाए थे, भगवान जगन्नाथ स्वामी के सम्मान में बस्तर के जन समुदाय द्वारा गार्ड आफ आनर के तौर पर पिछले 617 वर्ष पूर्व शुरू हुई परंपरा आज भी जारी है। गोंचा पर्व में शामिल होने पहुंचे श्रद्धालुओं ने जमकर तुपकी चलाया।

बस्तर गोंचा महापर्व में तीनों रथों में भगवान श्रीजगन्नाथ स्वामी, माता सुभद्रा व बलभद्र स्वामी के 22 विग्रहों को रथारूड़ कर श्रीगोंचा पूजा विधान में भगवान जगन्नाथ स्वामी को परम्परानुसार गजामुंग और फनस खोसा का भोग लगाकर रथयात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को गजामुंग और फनस खोसा का प्रसाद वितरण किया गया।