रतन टाटा न्यूज़: कोरोना महामारी के कारण आई आर्थिक मंदी के कारण बड़ी कंपनियां भी अपने कर्मचारियों को धड़ाधड़ नौकरी से निकाल रही हैं। वहीं टाटा कंपनी ने बड़ा दिल दिखाया है.
दरअसल, कंपनी ने बड़ी संख्या में कर्मचारियों की छंटनी की थी, लेकिन आखिरी वक्त पर रतन टाटा ने पैसे देकर इन कर्मचारियों की नौकरी बचा ली. बता दें कि टीसीएस ने पहले ही घोषणा कर दी थी कि वह किसी भी कर्मचारी की छंटनी नहीं करेगी।
यह मामला टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज का है, जहां 28 जून को 115 कर्मचारियों को नौकरी से हटा दिया गया था. इसके बाद रविवार 30 जून को कहा गया कि इन कर्मचारियों की छंटनी फिलहाल रोक दी गई है. इसमें 55 संकाय सदस्य और 60 गैर-शिक्षण कर्मचारी थे। रतन टाटा के नेतृत्व वाले टाटा एजुकेशन ट्रस्ट (टीईटी) द्वारा वित्तीय अनुदान बढ़ाने के फैसले के बाद छंटनी रोकने की घोषणा की गई थी।
115 कर्मचारियों की नौकरी बच गयी
ट्रस्ट ने परियोजनाओं, कार्यक्रमों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के वेतन और अन्य खर्चों के लिए नए फंड जारी किए, जिससे 115 कर्मचारियों की नौकरियां बच गईं। इससे पहले टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज ने वेतन के लिए पर्याप्त फंड न होने के कारण कर्मचारियों की छंटनी करने का मन बना लिया था। संगठन ने कहा कि वह पिछले 6 महीने से फंड की कमी से जूझ रहा है और अब समय पर वेतन देना मुश्किल हो रहा है.
88 साल से चल रहा है संस्थान
सर दोराबजी टाटा ग्रेजुएट स्कूल ऑफ सोशल वर्क की स्थापना वर्ष 1936 में हुई थी। वर्ष 1944 में इसका नाम बदलकर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज कर दिया गया। इस संस्थान को वर्ष 1964 में डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा मिला। यह संस्थान मानवाधिकार, सामाजिक न्याय और विकास अध्ययन के क्षेत्र में दुनिया भर में अपना नाम कमाता है।