Rajasthan Police : डिप्टी CM दीया कुमारी पर खबर लिखना पड़ा महंगा? MP के 2 पत्रकारों को उठा ले गई राजस्थान पुलिस
News India Live, Digital Desk: मैंने बस खबर लिखी थी, मुझे क्यों उठा रहे हो?" - यह शायद उन दो पत्रकारों के मन की आवाज थी, जिन्हें राजस्थान पुलिस कथित तौर पर उनके मध्य प्रदेश स्थित घर से 'अगवा' करके ले गई. मामला सीधे तौर पर राजस्थान की उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी से जुड़ा है, जिसके बाद प्रेस की आजादी और पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं.
आरोप है कि राजस्थान पुलिस बिना मध्य प्रदेश पुलिस को कोई सूचना दिए, सादे कपड़ों में आई और दो पत्रकारों को उनकी एक खबर के कारण हिरासत में लेकर चली गई.
क्या है पूरा मामला?
हिरासत में लिए गए पत्रकारों का नाम है- संतोष सिंह चौहान और अंशुल प्रसाद शर्मा. ये दोनों मध्य प्रदेश के गुना जिले के चाचौड़ा इलाके से अपने यूट्यूब चैनल और वेब पोर्टल चलाते हैं. इन्होंने हाल ही में उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी से जुड़े एक भूमि विवाद को लेकर खबर प्रकाशित की थी. और यही खबर उनकी मुसीबत की जड़ बन गई.
घर से उठाने का 'फिल्मी' अंदाज
प्रत्यक्षदर्शियों और पत्रकारों के परिवार वालों का आरोप है कि राजस्थान पुलिस सफेद रंग की एक निजी गाड़ी में सादे कपड़ों में आई थी. उन्होंने न तो अपना परिचय दिया, न कोई गिरफ्तारी वारंट दिखाया. उन्होंने दोनों पत्रकारों को जबरदस्ती गाड़ी में बिठाया और राजस्थान की ओर निकल गए. जब स्थानीय लोगों और पत्रकारों ने उन्हें रोकने की कोशिश की, तो उन्होंने खुद को राजस्थान पुलिस का बताकर जयपुर ले जाने की बात कही. इस पूरी कार्रवाई की भनक गुना जिले की स्थानीय पुलिस तक को नहीं लगी.
क्यों भड़की राजस्थान पुलिस? पुलिस का क्या है कहना?
इस मामले में राजस्थान पुलिस का कहना है कि यह कार्रवाई जयपुर के गांधी नगर थाने में दर्ज एक FIR के आधार पर की गई है. यह FIR खुद दीया कुमारी के निजी सचिव ने दर्ज कराई है. इसमें इन पत्रकारों पर उगाही करने, ब्लैकमेलिंग, आपराधिक साजिश रचने और आईटी एक्ट के तहत गंभीर आरोप लगाए गए हैं. पुलिस का दावा है कि ये पत्रकार खबर हटाने के बदले में पैसों की मांग कर रहे थे.
लेकिन कार्रवाई पर उठ रहे हैं ये 5 बड़े सवाल:
पुलिस की दलीलों के बावजूद, इस कार्रवाई के तरीके पर कई गंभीर सवाल उठ रहे हैं:
- सीमा का उल्लंघन? एक राज्य की पुलिस को दूसरे राज्य में कार्रवाई करने से पहले स्थानीय पुलिस को सूचना देना एक स्थापित प्रोटोकॉल है. इसका पालन क्यों नहीं किया गया?
- गिरफ्तारी या अपहरण? सादे कपड़ों में, बिना वारंट के किसी को उसके घर से उठा लेना, क्या यह कानूनी प्रक्रिया है या अपहरण जैसा नहीं है?
- ब्लैकमेलिंग या खबर की 'सजा'? यह मामला वाकई उगाही का है, या एक प्रभावशाली राजनेता के खिलाफ खबर लिखने की सजा दी जा रही है?
- डर का माहौल बनाने की कोशिश? क्या यह प्रेस की आजादी पर हमला है ताकि दूसरे पत्रकार भी ऐसी खबरें लिखने से डरें?
- FIR की टाइमिंग: क्या यह महज इत्तेफाक है कि खबर छपने के तुरंत बाद ही FIR दर्ज हो जाती है और आनन-फानन में पुलिस दूसरे राज्य तक पहुंच जाती है?
यह मामला अब मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच एक बड़ा राजनीतिक और कानूनी मुद्दा बनता जा रहा है. पत्रकार संगठन इस कार्रवाई की कड़ी निंदा कर रहे हैं और इसे "सत्ता का दुरुपयोग" बता रहे हैं.
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