राजस्थान ने वित्त आयोग के सामने रखी केन्द्र से करों में 50 प्रतिशत हिस्सेदारी दिलाने की मांग

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जयपुर, 1 अगस्त (हि.स.)। राजस्थान आए 16वें वित्त आयोग के सामने राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से करों में 50 प्रतिशत हिस्सेदारी दिलाने की मांग रखी है। राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि अभी राज्यों को केन्द्र से टैक्स में 41 प्रतिशत हिस्सेदारी ही मिलती है। इसे आने वाले समय में 50-50 प्रतिशत किया जाना चाहिए।

वित्त आयोग चेयरमैन अरविंद पनगढ़िया गुरुवार काे पत्रकाराें से चर्चा करते हुए कहा है कि राज्य और केन्द्र सरकार व्यक्तिगत लाभ की जो केश स्कीम चला रही है। उससे निश्चित रूप से राज्यों की वित्तीय स्थिति खराब हुई है। उन्हाेंने कहा कि राजस्थान सरकार ने राज्य की भौगोलिक, क्षेत्रफल और विशेष परिस्थितियों को देखते हुए राज्यों के बीच हिस्सेदारी के मानकों में भी बदलाव की मांग भी रखी। उन्होंने कहा कि 16वें वित्त आयोग के गठन के बाद आयोग राज्यों में दौरा करके वहां की सरकारों से वार्ता करने के बाद राज्यों की वित्तीय स्थिति का आंकलन कर रहा है। सभी राज्यों व केन्द्र सरकार से वार्ता के बाद आयोग अपनी सिफारिशें देगा। उसी आधार पर देश में आने वाले समय में केन्द्र और राज्यों के बीच करों का वितरण तय होगा।

पत्रकार वार्ता के दाैरान आयाेग के अन्य सदस्य भी माैजूद थे। इससे पहले आयोग की राज्य सरकार के साथ बैठक हुई। बैठक में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, उप मुख्यमंत्री दीया कुमारी और प्रेमचंद बैरवा सहित मंत्रिमंडल के अन्य सदस्य और अधिकारी मौजूद रहे।

राजस्थान सरकार की ओर से बैठक में आयोग के सामने प्रेजेंटेशन देते हुए कहा गया कि राजस्थान देश में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा राज्य है। लेकिन राज्य का दो तिहाई हिस्सा रेगिस्तान है। देश की वेस्ट लैंड का 21 प्रतिशत हिस्सा राजस्थान में है। यहां करीब 1071 किलोमीटर अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर है। प्रदेश में जनसंख्या घनत्व कम होने से लोगों तक मूलभूत सुविधाओं को पहुंचाने में इन्फ्रास्ट्रक्चर पर ज्यादा खर्चा होता है। राजस्थान की 75 प्रतिशत आबादी गांवों में निवास करती हैं। वहीं, यहां एससी-एसटी की आबादी भी 21 प्रतिशत हैं। प्रदेश में पानी एक बड़ी समस्या हैं। ऐसे में राजस्थान की इन विशेष परिस्थितियों को देखते हुए सरकार ने वित्त आयोग से मांग की है कि राज्यों मेंं करो की हिस्सेदारी में भी राजस्थान के मानकों में बदलाव किया जाए।

एक सवाल के जवाब में आयोग के चेयरमैन अरविंद पनगढ़िया ने कहा कि राज्य और केन्द्र सरकार व्यक्तिगत लाभ की जो केश स्कीम चला रही है। उससे निश्चित रूप से राज्यों की वित्तीय स्थिति खराब हुई है। इस तरह की व्यक्तिगत लाभ की योजनाओं से राज्य व केन्द्र सरकार की वित्तीय स्थिति पर गहरा असर पड़ता है। आयोग को यह भी देखना है कि देश में वित्तीय स्थिरता बनी रहे। इसलिए हम इस तरह की योजनाओं से होने वाले असर पर भी विचार करेंगे। उन्होंने कहा कि अभी हमने चार राज्यों का दौरा किया है। 24 राज्यों का दौरा ओर करना है। उसके बाद ही उस पर कुछ कहा जा सकता है।

उन्होंने कहा कि हम इसे अपनी सिफारिशों में शामिल करेंगे या नहीं। इस बारे में अभी नहीं बताया जा सकता हैं। लेकिन यह जरूर है कि वित्त आयोग इस तरह की योजनाओं से पड़ने वाले असर का आंकलन जरूर करेगा। बैठक में राज्य सरकार ने आयोग के सामने अपनी वित्तीय स्थिति और राजकोषीय घाटे की स्थिति भी रखी।

आयोग की ओर से कहा गया कि कोविड के बाद आर्थिक स्थिति में सुधार का मुद्दा हमारे विचार में रहेगा। कोविड के समय केन्द्र सरकार ने 2021-22 में चार प्रतिशत तक घाटे में छूट दी थी। उसके बाद इसे साढ़े तीन प्रतिशत और अब तीन प्रतिशत कर दिया गया हैं। लेकिन अभी भी अगर राज्य बिजली में रिफॉर्म करते हैं तो उन्हें आधे प्रतिशत की छूट दी हुई हैं। राजस्थान को विशेष राज्य के दर्जे की मांग पर आयोग ने कहा कि इसके बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता हैं।