सिद्धांत से ज्यादा प्रयोग से होगा हिन्दी का प्रचार-प्रसार : प्रो. संतोष भदौरिया

प्रयागराज, 26 जून (हि.स.)। राजभाषा अनुभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार के क्रम में विश्वविद्यालय के ‘प्राचीन इतिहास विभाग’ के कार्मिकों के लिए दो दिवसीय हिन्दी कार्यशाला का आयोजन किया गया।

राजभाषा कार्यान्वयन समिति के समन्वयक प्रो. संतोष भदौरिया ने कहा हिन्दी जो आपके सामने है वो 1000 वर्षों की परम्परा से बनी है। अमीर खुसरो से लेकर आज तक हिन्दी ने कई स्वरूप देखे हैं। कबीर से लेकर धूमिल तक की परम्परा हिन्दी की परम्परा है। हमें कार्य निष्पादन में हिन्दी का प्रयोग करना चाहिए। सिद्धांत से ज्यादा प्रयोग से ही हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार होगा।

उन्होंने कहा कि हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं का रिश्ता प्रगाढ़ होना चाहिए जिससे भारतीयता का विकास होगा। भाषा हमें मनुष्य बनने में मदद करती है। आदमी होने की तमीज भाषा से ही आती है। अंग्रेजी सीखना अच्छी बात है, लेकिन मातृभाषा में अभिव्यक्ति सबसे उत्तम बात है। हिन्दुस्तान में अंग्रेजी जानने वाली सिर्फ 3 प्रतिशत आबादी है। ये सुखद है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भारत के हर कोने से विभिन्न बोलियां बोलने वाले शिक्षक और कर्मचारी आए हैं, जिससे संस्थान गुलदस्ता जैसा लगता है। सभी हिन्दी अगर बोल रहे हैं तो भी हम उनकी टोन से उनके क्षेत्र का पता लगा लेते हैं। आज तकनीक ने हिन्दी प्रयोग को विस्तार दिया है, लेकिन हमें तकनीक प्रयोग की तमीज होनी चाहिए।

नागर विमान प्रशिक्षण कॉलेज, बमरौली के अमरेंद्र चौधरी ने कहा कि अनुच्छेद 353 से 351 तक भाषा से सम्बंधित अनुच्छेद हैं। 14 सितम्बर 1949 को हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया। उन्होंने बताया कि हमें शब्दों के चयन, वाक्य संरचना पर ध्यान देना चाहिए। नियमानुसार अब भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय रूप ही प्रयोग किया जाना चाहिए।

प्राचीन इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो. हर्ष कुमार ने कहा कि राजभाषा अनुभाग का विभागों में जाकर कार्मिकों को हिन्दी भाषा में कार्य करने के लिए प्रशिक्षित करना काफी सराहनीय है। ये कार्यशालाएं कार्मिकों के कार्यालयीन कार्य हिन्दी में निष्पादित करने के लिए प्रोत्साहित करेंगी। ऐसी कार्यशालाएं आयोजित होती रहनी चाहिए।

दूसरे सत्र में हिन्दी अधिकारी प्रवीण श्रीवास्तव ने कहा कि हिन्दी में कामकाज करना हमारी विधिक जिम्मेदारी के साथ-साथ नैतिक जिम्मेदारी भी है। हिन्दी अनुवादक हरिओम कुमार ने कार्यालयीन कार्य निष्पादन में हिन्दी प्रयोग के बारे में कहा कि हमें विभाग का नाम, अध्यक्ष का नाम, संकाय का नाम, मुहरें, पत्र शीर्ष फाइलों पर विषय वस्तु आदि के साथ-साथ कुल 14 प्रकार के दस्तावेजों को अनिवार्य रूप से द्विभाषी रूप में होने चाहिए। राजभाषा नियम 5 के अंतर्गत हिन्दी में प्राप्त पत्रों का जवाब हिन्दी में ही दिया जाना चाहिए। कार्यशाला का संचालन हिन्दी अनुवादक हरिओम कुमार तथा धन्यवाद ज्ञापन हिन्दी अधिकारी प्रवीण श्रीवास्तव ने किया।