नई दिल्ली, 12 अप्रैल (हि.स.)। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को कहा कि यह जानना सुखद है कि विशेषाधिकार प्राप्त वंशावली को कानून के शासन के प्रति जवाबदेह बना दिया गया है। उन्होंने कहा कि जब कानून ऐसे लोगों के करीब आता है, जिनके साथ बहुत अलग व्यवहार किया जाता था तो विरोध होना स्वाभाविक है।
उपराष्ट्रपति एन्क्लेव में प्रो. रमन मित्तल और डॉ. सीमा सिंह की पुस्तक ‘द लॉ एंड स्पिरिचुअलिटी: रीकनेक्टिंग द बॉन्ड’ का विमोचन करने के बाद उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने भारत को दुनिया का आध्यात्मिक केंद्र बताया। उन्होंने आगे कहा कि भारत ने अपनी 5000 वर्षों की सभ्यता के साथ अपने कालजयी ग्रंथों, दार्शनिक ग्रंथों और सांस्कृतिक प्रथाओं के माध्यम से लगातार दुनिया में धर्म और अध्यात्म का संदेश प्रसारित किया है। कड़ी मेहनत से अर्जित की गई इस विरासत का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने सभी को यह प्रतिबिंबित करने की आवश्यकता व्यक्त की कि हम अपनी सदियों पुरानी विरासत को कैसे बनाए रख सकते हैं।
कानून के शासन के पालन को लोकतंत्र का अमृत बताते हुए उपराष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि अगर कानून के समक्ष समानता नहीं है तो लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में देखे गए परिवर्तनकारी परिवर्तन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि अब हर कोई कानून के अधीन है। उन्होंने आगे जोर देकर कहा, “किसी समाज में, जब कोई कानून का उल्लंघन करके बच जाता है, तो वह एकमात्र लाभार्थी होता है, लेकिन पूरा समाज पीड़ित होता है।”
इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह, प्रो. रमन मित्तल और डॉ. सीमा सिंह और अन्य गण्यमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।