मैं और केवल मैं का भाव ही अहंकार है। जब किसी व्यक्ति को पद, प्रतिष्ठा, ज्ञान प्राप्त होता है तो उसमें अहंकार उत्पन्न होने लगता है। यह एक ऐसी अवस्था है जिसके प्रभाव में आकर व्यक्ति स्वयं को सर्वश्रेष्ठ, सबसे शक्तिशाली और सब कुछ मानने लगता है। वह उन लोगों को हेय दृष्टि से देखना शुरू कर देता है जो उससे अधिक योग्य और विशेषज्ञ हैं। ऐसा व्यक्ति अपने अहंकार और अस्वीकृति के कारण योग्य व्यक्तियों से दूर भागता है। यही अहंकार उसके व्यक्तिगत विकास में सबसे बड़ी बाधा बन जाता है। वह एकाकी जीवन जीने को मजबूर है।
अभिमान एक गुण और मानसिक बीमारी है। इसके दलदल में फंसा व्यक्ति हमेशा असंतुष्ट, बेचैन और तनावग्रस्त रहता है, जिसके परिणामस्वरूप शारीरिक और मानसिक बीमारियाँ उसे जकड़ लेती हैं। इस अहंकार की स्थिति में पला-बढ़ा व्यक्ति हमेशा सद्गुणों को प्राप्त करने से वंचित रह जाता है, जिसके कारण वह नैतिक और आध्यात्मिक विकास की दिशा में आगे नहीं बढ़ पाता है। अहंकारी व्यक्ति हमेशा दूसरों को हर क्षेत्र में अपने से कमतर समझता है जिसका असर उसके सामाजिक जीवन पर भी पड़ता है। ऐसे व्यक्ति की दुनिया खुद से शुरू होती है और खुद पर ही खत्म होती है।
अहंकार की यह बीमारी व्यक्ति को निराशा और नकारात्मक सोच का वाहक बना देती है। इस अहंकारी मनोवृत्ति वाला व्यक्ति नए ज्ञान, उन्नति और रचनात्मकता का मार्ग बंद कर देता है। अहंकार की तीव्र आपाधापी में मनुष्य यह भूल जाता है कि इस असीमित ब्रह्माण्ड में उसका अस्तित्व शून्य है। अक्सर देखा जाता है कि अहंकारी व्यक्ति अक्सर खुद को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ दूसरों के लिए भी हानिकारक हो जाता है। बुद्धिमान लोग घमंडी व्यक्ति से दूर रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं। अहंकार का यह पर्दा मनुष्य की विवेक शक्ति को भी नष्ट कर देता है जिसके कारण मनुष्य पतन का शिकार हो जाता है।