जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर को पटना पुलिस ने बीपीएससी परीक्षा रद्द करने की मांग पर चल रहे उनके आमरण अनशन के दौरान हिरासत में ले लिया। जानकारी के मुताबिक, सोमवार सुबह करीब 4 बजे उन्हें गांधी मैदान स्थित अनशन स्थल से जबरन उठाकर एम्स, पटना ले जाया गया। प्रशांत किशोर 2 जनवरी से इस मांग को लेकर आमरण अनशन पर थे।
सुबह 4 बजे अनशन स्थल से हिरासत
किशोर की टीम का कहना है कि बिहार पुलिस ने उन्हें गांधी मूर्ति स्थित अनशन स्थल से जबरन उठाया और एंबुलेंस में किसी अज्ञात स्थान पर ले गई। प्रशांत किशोर ने इलाज कराने से इनकार करते हुए अनशन जारी रखने की घोषणा की है। इस घटना का एक वीडियो समाचार एजेंसी एएनआई ने जारी किया है, जिसमें दिख रहा है कि पुलिस समर्थकों के विरोध के बावजूद उन्हें उठाकर ले जा रही है।
वाईएसएस के समर्थन में किशोर का बयान
रविवार को प्रशांत किशोर ने कहा, “नवगठित वाईएसएस (युवा और छात्र संघ) के 51 सदस्यों में से 42 ने इस आंदोलन को आगे बढ़ाने का फैसला किया है। ये सभी सदस्य अलग-अलग राजनीतिक संगठनों से जुड़े हैं, लेकिन छात्रों और युवाओं के हित में एकजुट होकर आंदोलन कर रहे हैं।” उन्होंने वाईएसएस को पूरी तरह गैर-राजनीतिक मंच बताते हुए कहा कि वह इस आंदोलन को समर्थन देने के लिए ही यहां हैं।
बीपीएससी विवाद का मूल
बीपीएससी (बिहार लोक सेवा आयोग) ने 13 दिसंबर को आयोजित परीक्षा के कुछ चयनित समूह के लिए फिर से परीक्षा देने का निर्देश दिया था। इसके तहत शनिवार को पटना के 22 केंद्रों पर दोबारा परीक्षा का आयोजन किया गया।
- कुल 12,012 अभ्यर्थियों में से 8,111 ने अपने प्रवेश पत्र डाउनलोड किए।
- हालांकि, परीक्षा में केवल 5,943 छात्र उपस्थित हुए।
- बीपीएससी ने अपने बयान में कहा कि सभी केंद्रों पर परीक्षा शांतिपूर्ण ढंग से आयोजित हुई और किसी गड़बड़ी की सूचना नहीं है।
छात्रों पर लाठीचार्ज को लेकर विरोध
प्रशांत किशोर ने अपने बयान में 29 दिसंबर को प्रदर्शनकारी छात्रों पर हुई पुलिस कार्रवाई को “लोकतंत्र की हत्या” करार दिया। उस दिन प्रदर्शन कर रहे बीपीएससी अभ्यर्थियों पर पानी की बौछारें की गई थीं और लाठीचार्ज किया गया था। किशोर ने इसे राज्य सरकार की तानाशाही मानसिकता का प्रतीक बताया।
क्या है बीपीएससी विवाद का असर?
बीपीएससी परीक्षा को लेकर छात्रों और युवाओं में गहरी नाराजगी है। दोबारा परीक्षा कराने के फैसले और छात्रों पर हुई पुलिस कार्रवाई से प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल खड़े हो रहे हैं। प्रशांत किशोर का अनशन इस मुद्दे को और अधिक जोर-शोर से उठाने का एक माध्यम बना।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार और बीपीएससी प्रशासन इस मामले का समाधान कैसे निकालते हैं, क्योंकि विरोध प्रदर्शन तेज होने की संभावना बनी हुई है।