योग साधना का आध्यात्मिक जगत में तो बहुत महत्व है ही, वैज्ञानिक जगत में भी इसका महत्व कम नहीं है। यदि योग को परिभाषित करना है तो प्रकृति में प्रवाहित होने वाली ऊर्जा का संबंध आंतरिक जगत से होना चाहिए। योग के माध्यम से ही प्रकृति की सबसे महत्वपूर्ण ऑक्सीजन का प्रवाह शरीर में होता है। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि जब किसी गाड़ी के टायरों की हवा निकल जाए तो वह आगे नहीं बढ़ पाती। योग से सूर्य और चंद्रमा की किरणें भी शरीर को मिलती हैं। योग के महत्व के अनेक उदाहरण हैं।
शास्त्रों में सात ऋषियों का उल्लेख मिलता है। आकाश मंडल में भी इन ऋषियों का उल्लेख मिलता है। राजा उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव भी ध्रुव तारे के रूप में इन ऋषियों के सामने उपस्थित होते हैं। जब माता के आदेश पर पिता ने ध्रुव को अपनी गोद से उतार दिया, तब माता सुनीति के अनुरोध पर पांच वर्षीय बालक ध्रुव ने वन में जाकर योग साधना की। अंततः भगवान विष्णु को ध्रुव के पास आना पड़ा।
गोस्वामी तुलसी दास ने रामचरित मानस में ‘नारी सुभाउ सत्य सब कहें’। अवगुण आठ सदा उ रहिने। ‘साहस चपलता माया, भय अबिबेक असौच अदाया।’ चौपाई के अर्थ पर विचार आवश्यक है। यहां तुलसीदास ने स्त्री के आठ गुणों पर प्रकाश डाला है। यहां स्त्री का अर्थ मन से लेना चाहिए क्योंकि स्त्री शब्द संस्कृत के नारी शब्द से बना है जिसका अर्थ नृत्य और नेत्र दोनों होता है।
मन के विचार हर व्यक्ति को नचाते हैं, दृष्टि भी देते हैं। इन सन्दर्भों में इस चौपाई में स्त्रीलिंग शब्द नहीं है बल्कि क्रिया ही शब्द है। व्यक्ति का कर्म जीवन तक ही नहीं उसके बाद भी जीवित रहता है। परिणामस्वरूप यह कहा जा सकता है कि योग के माध्यम से जीवन के सुखों को सुरक्षित रखा जा सकता है।