बाबासाहेब आंबेडकर के नाम पर सियासी संग्राम: नेहरू सरकार से इस्तीफे के पीछे के कारणों पर नई बहस

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डॉ. भीमराव आंबेडकर, संविधान निर्माता और सामाजिक न्याय के प्रतीक, इन दिनों भारतीय राजनीति के केंद्र में हैं। उनके सम्मान को लेकर संसद से सड़क तक सत्ताधारी भाजपा और विपक्षी कांग्रेस आमने-सामने हैं। जहां भाजपा कांग्रेस पर आंबेडकर का अपमान करने का आरोप लगा रही है, वहीं कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर संसद में दिए गए भाषण में आंबेडकर का अपमान करने का आरोप लगाते हुए इस्तीफे की मांग की है।

इस राजनीतिक विवाद के बीच, डॉ. आंबेडकर और भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के बीच संबंधों और उनके नेहरू कैबिनेट से इस्तीफे के कारणों पर चर्चा फिर से तेज हो गई है।

नेहरू मंत्रिमंडल में आंबेडकर का कार्यकाल

डॉ. भीमराव आंबेडकर ने पंडित नेहरू की सरकार में कानून मंत्री के रूप में 4 साल, 1 महीना, और 24 दिन तक सेवा दी। हालांकि, 27 सितंबर 1951 को उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उनके इस फैसले को हिंदू कोड बिल पर उनके और नेहरू सरकार के बीच मतभेद का नतीजा माना जाता है।

डॉ. आंबेडकर के इस्तीफे से संबंधित पत्र सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है, लेकिन विभिन्न पुस्तकों और रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि उन्होंने इसमें अपने इस्तीफे के पीछे की वजहों का विस्तार से जिक्र किया था।

इस्तीफे के प्रमुख कारण

1. हिंदू कोड बिल पर मतभेद

आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल को सामाजिक सुधारों का महत्वपूर्ण कदम माना। हालांकि, नेहरू सरकार के भीतर इस बिल को लेकर मतभेद थे, और इसके प्रति धीमी प्रगति से आंबेडकर असंतुष्ट थे।

2. सरकारी उपेक्षा और असम्मान

रिपोर्ट्स के मुताबिक, आंबेडकर ने अपने पत्र में लिखा कि उन्हें कैबिनेट में स्थान तो दिया गया, लेकिन उनके शैक्षणिक और व्यावसायिक कौशल के अनुरूप जिम्मेदारियां नहीं सौंपी गईं। वे अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ थे, लेकिन वित्त मंत्रालय का दायित्व उन्हें नहीं दिया गया।

3. मुख्य समितियों से बाहर रखा जाना

आंबेडकर ने अपनी चिट्ठी में उल्लेख किया कि उन्हें कैबिनेट की मुख्य समितियों, जैसे विदेश मामलों की समिति, रक्षा समिति, और आर्थिक मामलों की समिति, में शामिल नहीं किया गया। उन्होंने इसे अपने प्रति पक्षपातपूर्ण रवैये का उदाहरण बताया।

4. पिछड़े वर्गों और अनुसूचित जातियों की अनदेखी

आंबेडकर ने सरकार पर अनुसूचित जातियों और पिछड़े वर्गों के प्रति उपेक्षित व्यवहार का आरोप लगाया। उन्होंने पिछड़े वर्गों के लिए आयोग की नियुक्ति न करने पर भी नाराजगी जताई।

5. विदेश नीति पर असहमति

डॉ. आंबेडकर ने नेहरू सरकार की विदेश नीति पर भी सवाल उठाए। कश्मीर और पूर्वी पाकिस्तान के मुद्दों पर उनकी राय सरकार से अलग थी।