बिहार में बदले राजनीतिक समीकरण: नीतीश कुमार के बिना भी सरकार बनाने में सक्षम बीजेपी, जानें पूरा गणित

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बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने एग्जिट पोल के ज्यादातर अनुमानों को गलत साबित कर दिया है। कुल 11 एग्जिट पोल में से सिर्फ 'पोल डायरी' ने एनडीए गठबंधन को 184 से 206 सीटें मिलने का अनुमान जताया था और अब जब यह आंकड़ा 200 के करीब पहुंच गया है, तो हर तरफ इन नतीजों की चर्चा हो रही है। इन सबके बीच भारतीय जनता पार्टी का प्रदर्शन सबसे ज्यादा ध्यान खींच रहा है। भाजपा ने 101 सीटों पर चुनाव लड़कर 91 पर शानदार जीत हासिल की है, जिससे वह बिहार की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गई है। 2010 में भी भाजपा ने इतनी ही सीटें जीती थीं, लेकिन उस समय जदयू सबसे बड़ी पार्टी थी। इस बार हालात बिल्कुल अलग हैं और भाजपा के लिए नए राजनीतिक दरवाजे खुल गए हैं।

3 राजनीतिक समीकरण बदले 1

सरकार कैसे बनेगी?

इस चुनाव में जेडीयू ने भी अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन 79 सीटों के साथ वह बीजेपी से 12 सीटें पीछे है। यह सांख्यिकीय अंतर बीजेपी को उस स्थिति में ला खड़ा करता है जहाँ वह चाहे तो जेडीयू के समर्थन के बिना भी बिहार में सरकार बना सकती है। इसके लिए रास्ता चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी-रामविलास (एलजेपी-आर), जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (एचएएम) और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) को साथ लाकर तैयार किया जा सकता है।
पीएम मोदी के हनुमान ने कर दिया कमाल!

बिहार विधानसभा में बहुमत के लिए 122 सीटों का जादुई आंकड़ा चाहिए। भाजपा के पास 91 विधायक हैं। अगर खुद को 'पीएम मोदी का हनुमान' कहने वाले चिराग पासवान की पार्टी की 21 सीटें इसमें जोड़ दी जाएं तो यह संख्या 112 पहुंच जाती है। उसके बाद हम की 5 और आरएलएम की 4 सीटें जोड़ने पर कुल संख्या 121 हो जाती है। इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का भी एक उम्मीदवार जीतता हुआ दिख रहा है। अगर बसपा का समर्थन मिल जाता है तो भाजपा आसानी से 122 के बहुमत के आंकड़े को पार कर सकती है। हालांकि, यह महज एक राजनीतिक विकल्प है और भाजपा शायद यह रास्ता न अपनाए, क्योंकि नीतीश कुमार अभी भी बिहार की राजनीति में एक बड़ा और अहम चेहरा हैं।

नीतीश कुमार के पास भी विकल्प खुले हैं

दूसरी ओर, नीतीश कुमार के पास भी अपने विकल्प खुले हैं। अगर वह चाहें तो भाजपा के बिना भी सरकार बनाने की क्षमता रखते हैं। अगर उनकी 79 सीटों को राजद की 28, कांग्रेस की 5, ओवैसी की पार्टी की 5 और अन्य की 9 सीटों के साथ मिला दिया जाए, तो वह बहुमत का आंकड़ा भी पार कर सकते हैं। ऐसी सरकार में वह मजबूत स्थिति में हो सकते हैं, क्योंकि राजद उनके मुकाबले छोटा सहयोगी होगा। हालांकि, इस गठबंधन में नीतीश कुमार को असदुद्दीन ओवैसी जैसे दलों से भी समझौता करना होगा, जिनकी विचारधारा नीतीश कुमार की उदार छवि से मेल नहीं खाती। इसलिए, बिहार के इन चुनाव परिणामों ने राजनीतिक पंडितों को सोचने पर मजबूर कर दिया है और यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में राज्य की राजनीति किस करवट बैठती है।

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