बिहार में सियासी भूचाल, अशोक गहलोत के एक बयान से खलबली, क्या महागठबंधन एक से ज़्यादा डिप्टी सीएम बनाने वाला है?

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News India Live, Digital Desk : बिहार की राजनीति में आजकल बयानबाजियों और अटकलों का दौर गर्म है. लोकसभा चुनाव से पहले महागठबंधन में शामिल पार्टियां भविष्य की रणनीति पर मंथन कर रही हैं, और इसी बीच कांग्रेस के बड़े नेता व राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के एक बयान ने नई चर्चा छेड़ दी है. गहलोत ने जो संकेत दिया है, उससे लग रहा है कि बिहार में अगर महागठबंधन की सरकार बनी, तो शायद उपमुख्यमंत्री (Deputy CM) पदों की संख्या बढ़ाई जा सकती है. उनके इस बयान के बाद सियासी गलियारों में तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं.

गहलोत ने सीधे तौर पर कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में मुख्यमंत्री का चेहरा तेजस्वी यादव ही होंगे. साथ ही, उन्होंने यह भी बताया कि विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के मुखिया मुकेश सहनी भी उपमुख्यमंत्रियों में से एक होंगे. लेकिन इसके बाद जो बात उन्होंने कही, वो बड़ी अहम है: उन्होंने कहा कि मुकेश सहनी के अलावा "और भी समाज के लोगों में से उपमुख्यमंत्री बनाए जाएंगे". अब इसी बात को लेकर बहस तेज है. इसका सीधा मतलब यही निकलता है कि महागठबंधन की योजना एक से अधिक उपमुख्यमंत्री बनाने की हो सकती है. इससे पहले भी ऐसी अटकलें लग चुकी हैं कि दलित, मुस्लिम और अति पिछड़ा वर्ग से एक-एक उपमुख्यमंत्री बनाए जा सकते हैं.

राजनीतिक जानकार इसे महागठबंधन की एक बड़ी रणनीति मान रहे हैं. उनका कहना है कि यह शायद भविष्य की गठबंधन सरकारों का एक नया तरीका हो सकता है, खासकर उन राज्यों में जहां किसी एक दल को पूरा बहुमत मिलने की उम्मीद कम होती है. उपमुख्यमंत्रियों की संख्या बढ़ाने से गठबंधन में शामिल अलग-अलग पार्टियों के नेताओं को साधने और विभिन्न समुदायों और क्षेत्रों को सरकार में प्रतिनिधित्व देने में मदद मिल सकती है. इससे गठबंधन के भीतर संतुलन बनाए रखने और अंदरूनी मतभेदों को कम करने में भी आसानी हो सकती है, खासकर जब सीटों के बंटवारे को लेकर खींचतान चल रही हो. अशोक गहलोत खुद बिहार में महागठबंधन को एकजुट रखने की कोशिशों में जुटे हुए हैं.

तो यह साफ है कि बिहार में महागठबंधन अपनी पकड़ मजबूत करने और ज़्यादा से ज़्यादा वर्गों को अपने पाले में लाने के लिए यह बड़ा कदम उठा सकता है. हालांकि, इस बारे में अभी कोई विस्तृत या अंतिम घोषणा नहीं हुई है, लेकिन अशोक गहलोत का यह बयान अपने आप में बहुत मायने रखता है. बिहार की आने वाली राजनीति पर इसका बड़ा असर देखने को मिल सकता है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि यह रणनीति चुनावी मोर्चे पर कितनी कामयाब होती है.

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