केरल में सनातन धर्म और श्री नारायण गुरु को लेकर सियासी घमासान: जातीय वोट बैंक की जंग तेज

Sri Narayan Controversy 17358136

केरल में सीपीआईएम और भाजपा के बीच सनातन धर्म और श्री नारायण गुरु को लेकर सियासी टकराव गहराता जा रहा है। मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के बयान ने इस विवाद को और भड़का दिया है, जिसमें उन्होंने श्री नारायण गुरु को सनातन धर्म के समर्थक के रूप में प्रस्तुत करने के प्रयासों का विरोध किया। विजयन ने कहा कि नारायण गुरु ने जाति-आधारित भेदभाव को चुनौती दी थी और ‘एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर’ का नारा दिया था।

पिनराई विजयन का बयान और भाजपा का विरोध

  • विजयन का दावा:
    मुख्यमंत्री ने कहा कि नारायण गुरु सनातन धर्म के प्रवक्ता या अनुयायी नहीं थे।

    • “सनातन धर्म वर्णाश्रम व्यवस्था का प्रतीक है, जिसे नारायण गुरु ने चुनौती दी थी।”
    • गुरु के जीवन और संदेश ने चातुर्वर्ण्य व्यवस्था के खिलाफ खड़े होने का प्रतीक प्रस्तुत किया।
  • भाजपा का पलटवार:
    भाजपा ने विजयन के बयान को हिंदू धर्म का अनादर बताया।

    • पूर्व केंद्रीय मंत्री वी मुरलीधरन ने कहा कि विजयन ने न केवल नारायण गुरु बल्कि नारायणिया समुदाय का भी अपमान किया है।

कांग्रेस ने भी किया विरोध

कांग्रेस नेता वीडी सतीशन ने भी मुख्यमंत्री के बयान की आलोचना की।

  • सतीशन का तर्क:
    • “सनातन धर्म एक सांस्कृतिक विरासत है, जिसमें अद्वैत, तत्त्वमसि, वेद और उपनिषद शामिल हैं।”
    • सतीशन ने विजयन पर सनातन धर्म को संघ परिवार तक सीमित करने का आरोप लगाया।
    • “मंदिर जाने, चंदन लगाने या भगवा पहनने वालों को संघ का हिस्सा कहना गलत है।”

जातीय वोट बैंक पर नजर

सभी राजनीतिक दल एझावा समुदाय और श्री नारायणिया समाज के 23% वोट बैंक को साधने में जुटे हैं।

  • एझावा समुदाय:
    • यह समुदाय वामपंथी दलों का परंपरागत समर्थक रहा है।
    • हाल के वर्षों में भाजपा ने इस समुदाय में अपनी पैठ बढ़ाई है।
    • वोट शिफ्टिंग:
      • 2006 में भाजपा को 6% एझावा वोट मिले थे, जो 2016 में बढ़कर 17% हो गए।
      • वामपंथी दलों का वोट शेयर इसी अवधि में 64% से घटकर 49% पर आ गया।
      • कांग्रेस को मामूली फायदा हुआ, 27% से बढ़कर 28%।
  • भाजपा और कांग्रेस दोनों इस समुदाय के वोट बैंक को आकर्षित करने की रणनीति में जुटी हैं।

श्री नारायण गुरु का योगदान

श्री नारायण गुरु (1856-1928) सामाजिक सुधारक और क्रांतिकारी संत थे।

  • जाति-प्रथा का विरोध:
    • गुरु ने ‘एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर’ का संदेश दिया।
    • उन्होंने 1888 में अरुविप्पुरम में जाति-प्रथा को चुनौती देते हुए भगवान शिव का मंदिर बनवाया।
    • मंदिरों में मूर्तियों की जगह दर्पण स्थापित किया, जो यह संदेश देता है कि परमात्मा हर व्यक्ति के भीतर है।
  • धार्मिक एकता:
    गुरु ने अपने जीवन में धार्मिक और सामाजिक जागृति के लिए काम किया।

पोप फ्रांसिस की सराहना

हाल ही में पोप फ्रांसिस ने भी श्री नारायण गुरु की प्रशंसा की।

  • दिसंबर 2023 में, उन्होंने गुरु के मानव एकता के संदेश को प्रासंगिक बताया।
  • उन्होंने कहा कि गुरु का जीवन सामाजिक और धार्मिक जागृति को बढ़ावा देने के लिए समर्पित था।

राजनीतिक दलों की रणनीति

  • वामपंथी दल:
    एझावा समुदाय को वापस अपनी ओर खींचने के लिए गुरु के संदेश को वामपंथी विचारधारा के करीब दिखाने की कोशिश।
  • भाजपा:
    हिंदू वोट बैंक को साधने के लिए नारायण गुरु को सनातन धर्म के समर्थक के रूप में पेश करने का प्रयास।
  • कांग्रेस:
    गुरु के संदेश को सांस्कृतिक विरासत के रूप में दिखाकर संघ परिवार और वामपंथ दोनों पर निशाना साध रही है।