जोधपुर, 20 मई (हि.स.)। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जोधपुर ने भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (आईएनएसए) के सहयोग से भारत के पहले परमाणु परीक्षण, पोकरण-1 की 50वीं वर्षगांठ मनाई। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जोधपुर परिसर में आयोजित इस कार्यक्रम में परमाणु विज्ञान के ऐतिहासिक और समकालीन महत्व पर प्रकाश डाला गया।
जोधपुर आईआईटी के निदेशक प्रो. अविनाश कुमार अग्रवाल ने इस दौरान होमी जहांगीर भाभा के मूलभूत योगदान और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि पोकरण परमाणु परीक्षण एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। उन्होंने प्रौद्योगिकीविदों और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान से ऐसी तकनीक विकसित करने के लिए अपनी ऊर्जा का उपयोग करने को कहा जो अगले 50 वर्षों तक देश को गौरवान्वित करे। भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (आईएनएसए) के प्रकाशन विभाग के उपाध्यक्ष डॉ. वीएम तिवारी ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी, वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देने और आवश्यक सुविधाएं प्रदान करने के लिए 1935 में भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (आईएनएसए) की स्थापना पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (आईएनएसए) ने विज्ञान को सामाजिक भलाई के रूप में समर्थन देने और वैज्ञानिक प्रयासों में तालमेल को बढ़ावा देने के लिए अपने दृष्टिकोण को संरेखित किया है। डॉ. तिवारी ने ऊर्जा स्वतंत्रता, रणनीतिक बुनियादी ढांचे, टिकाऊ लक्ष्यों और विशेष रूप से पृथ्वी प्रणाली विज्ञान को प्राप्त करने में विज्ञान की भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने परमाणु प्रौद्योगिकियों के लिए भूविज्ञान के महत्व को रेखांकित किया, जिसमें परीक्षणों के लिए साइट का चयन, भूवैज्ञानिक संरचनाओं को समझना और बिजली संयंत्रों के लिए अंतर्दृष्टि शामिल है।
परमाणु प्रौद्योगिकी का विश्लेषण
रक्षा प्रयोगशाला जोधपुर के वैज्ञानिक जी डॉ. दीपक गोपालानी ने अपनी प्रस्तुति के दौरान परमाणु प्रौद्योगिकी का व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत किया। उन्होंने ऊर्जा, अंतरिक्ष, चिकित्सा, अनुसंधान, कृषि और रक्षा जैसे क्षेत्रों में इसके बहुमुखी अनुप्रयोगों पर प्रकाश डाला। परमाणु क्षमताओं के रणनीतिक महत्व पर जोर देते हुए डॉ. गोपालानी ने रिएक्टर दुर्घटनाओं और आतंकवाद में परमाणु सामग्री के दुरुपयोग सहित संभावित खतरों को संबोधित किया। डॉ. गोपालानी ने परमाणु घटनाओं के विनाशकारी परिणामों पर भी प्रकाश डाला, जिसमें व्यापक रेडियोधर्मी संदूषण, पर्यावरणीय क्षति और परमाणु शीत की संभावना शामिल है।