सहमति से सम्बंध बनाने वाले किशोरों के खिलाफ हो रहा पॉक्सो एक्ट का दुरुपयोग : हाई कोर्ट

प्रयागराज, 05 जुलाई (हि.स.)। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि न्यायिक प्रणाली का लक्ष्य कुछ संदर्भों में नाबालिगों की सुरक्षा और उनकी स्वायत्तता की मान्यता के बीच संतुलन स्थापित करना होना चाहिए। हाई कोर्ट ने हाल ही में कहा कि सहमति से रोमांटिक सम्बंधों में किशोरों के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम का दुरुपयोग किया जा रहा है। कोर्ट ने सतीश उर्फ चांद की पाक्सो एक्ट में जमानत मंजूर करते हुए यह टिप्पणी की है।

न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने कहा कि ऐसे मामलों में सूक्ष्म दृष्टिकोण और सावधानी पूर्वक न्यायिक विचार की आवश्यकता होती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि न्याय उचित रूप से दिया जाए। हाई कोर्ट ने जमानत मंजूर करते हुए कहा कि इस अदालत ने समय-समय पर किशोरों पर यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम के आवेदन के बारे में चिंता व्यक्त की है जबकि अधिनियम का प्राथमिक उद्देश्य वयस्कता (18) से कम उम्र के बच्चों को यौन शोषण से बचाना है। ऐसे मामले भी हैं जहां इसका दुरुपयोग किया गया है। खासकर किशोरों के बीच सहमति से बने रोमांटिक संबंधों में।

हाई कोर्ट ने कहा कि मामले का मूल्यांकन उसके व्यक्तिगत तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर किया जाना चाहिए। रिश्ते की प्रकृति और दोनों पक्षों के इरादों की सावधानीपूर्वक जांच की जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा न्यायालयों को अपने विवेक का उपयोग बुद्धिमानी से करना चाहिए, तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पाक्सो के प्रयोग से अनजाने में उन व्यक्तियों को नुकसान न पहुंचे जिनकी रक्षा करना इसका उद्देश्य है।

मामले के अनुसार आरोपित सतीश उर्फ चांद, जिसे इस साल 5 जनवरी को गिरफ्तार किया गया था। उसके खिलाफ थाना बरहज जिला देवरिया में मुकदमा दर्ज था। उस पर जून 2023 में नाबालिग बेटी को “बहला-फुसलाकर” भगा ले जाने का आरोप है।

जमानत की मांग करते हुए सतीश के वकील ने अदालत से कहा कि उसे इस मामले में झूठा फंसाया गया है। क्योंकि पीड़िता ने खुद अपने बयान में सहमति जताई थी। यह भी कहा गया कि उसकी उम्र 18 साल है। अदालत को यह भी बताया गया कि आरोपी और पीड़िता एक-दूसरे से प्यार करते थे और अपने माता-पिता के डर से उन्होंने भागकर मंदिर में शादी कर ली थी।

यह भी पता चला कि पीड़िता उस समय छह महीने की गर्भवती थी और अब उसने एक बच्चे को जन्म दिया है। आरोपी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने अदालत को बताया कि वह बच्चे का पालन-पोषण करना चाहता है। क्योंकि वह उसका पिता है और अपनी विवाहित पत्नी को भी अपने साथ रखने को तैयार है।

अदालत ने कहा कि आरोपित को जमानत देने से इनकार करने के लिए कोई असाधारण परिस्थिति नहीं दिखाई गई है। अदालत ने आरोपित की जमानत याचिका इस शर्त पर मंजूर कर ली कि आरोपी पीड़िता और उसके बच्चे की देखभाल करेगा।

अदालत ने आगे निर्देश दिया, आवेदक को पीड़िता के नवजात बच्चे के नाम पर जेल से रिहाई की तारीख से छह महीने की अवधि के भीतर वयस्क होने तक 2 लाख रुपये की राशि जमा (सावधि जमा) करनी होगी।