पेट्रोल-डीजल होगा महंगा? अमेरिका-चीन की दोस्ती और रूस पर सख्ती से आसमान पर कच्चे तेल के दाम!

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Crude oil price today : आम आदमी की जेब पर एक बार फिर महंगाई की मार पड़ सकती है। सोमवार को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में आग लग गई और दाम दो हफ्तों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए। ब्रेंट क्रूड का भाव 66 डॉलर प्रति बैरल के पार निकल गया। इस बड़ी तेजी के पीछे दो बड़ी वजहें हैं- एक तरफ अमेरिका और चीन अपनी दुश्मनी भुलाकर व्यापारिक समझौते की ओर बढ़ रहे हैं, तो दूसरी तरफ अमेरिका और यूरोप ने रूस पर शिकंजा कस दिया है।

पहली वजह: अमेरिका-चीन की 'डील' वाली दोस्ती

दुनिया के दो सबसे बड़े दुश्मन, अमेरिका और चीन के बीच चल रहा ट्रेड वॉर अब खत्म होने की कगार पर है। दोनों देशों के शीर्ष अधिकारियों ने घोषणा की है कि वे कई विवादित मुद्दों पर सहमत हो गए हैं। इससे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच एक बड़े समझौते का रास्ता साफ हो गया है।

सबसे बड़ी राहत की बात यह है कि ट्रंप की चीनी सामानों पर 100% टैरिफ लगाने की धमकी अब ठंडे बस्ते में चली गई है। वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने इसकी पुष्टि की है। अमेरिका और चीन दुनिया के सबसे बड़े तेल उपभोक्ता हैं। अगर उनके बीच व्यापार बढ़ता है, तो उनकी अर्थव्यवस्थाएं रफ्तार पकड़ेंगी, जिससे तेल की मांग बढ़ेगी और कीमतें ऊपर जाएंगी।

दूसरी वजह: रूस पर अमेरिकी और यूरोपीय प्रतिबंध

पिछले हफ्ते अमेरिका और यूरोप ने रूस के दो सबसे बड़े तेल उत्पादकों (रोसनेफ्ट और लुकोइल) पर प्रतिबंध लगा दिए थे। इन प्रतिबंधों का मकसद रूस के लिए अपना तेल बेचना और मुश्किल, महंगा और जोखिम भरा बनाना है। हालांकि, इससे तेल की सप्लाई पर तुरंत कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन रूस के बड़े खरीदार, जैसे भारत और चीन, अब उससे तेल खरीदने से कतरा रहे हैं।

भारत के रिफाइनर्स ने कहा है कि रूस से तेल का आयात लगभग शून्य हो जाएगा, जबकि चीन ने भी कुछ खरीद रोक दी है। अब जब ये देश रूस से तेल नहीं खरीदेंगे, तो उन्हें दूसरे देशों से तेल लेना पड़ेगा। इससे बाजार में बाकी तेल की मांग बढ़ जाएगी, जो कीमतों को और ऊपर धकेल रहा है।

बाजार के जानकारों का क्या कहना है?

सिंगापुर की बाजार विशेषज्ञ वंदना हरि का कहना है, "अमेरिका-चीन व्यापार समझौते की उम्मीद से बाजार में तेल की मांग को लेकर एक अच्छा माहौल बना है। लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बाजार में तेल की सप्लाई पहले से ही काफी ज्यादा है, जो कीमतों को बहुत ज्यादा बढ़ने से रोकेगी। ऐसा लगता है कि ब्रेंट क्रूड 60 डॉलर के ऊपरी स्तर पर अपने पुराने दायरे में वापस आ सकता है।"

कुल मिलाकर, कच्चे तेल का बाजार इस वक्त दो बड़ी ताकतों के बीच फंसा हुआ है। एक तरफ व्यापारिक समझौते की उम्मीद और रूस पर प्रतिबंध कीमतें बढ़ा रहे हैं, तो दूसरी तरफ अतिरिक्त सप्लाई इसे काबू में रखने की कोशिश कर रही है। अब सबकी निगाहें गुरुवार को होने वाली ट्रंप और शी जिनपिंग की मुलाकात पर टिकी हैं, जिसके बाद ही तेल की कीमतों की असली दिशा तय होगी।

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