आर्बिट्रेशन कार्यवाही के खिलाफ याचिका पोषणीय नहीं, अधिकरण आदेश पर हस्तक्षेप से इंकार

प्रयागराज, 02 अप्रैल (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आर्बिट्रेशन कार्यवाही को लेकर दाखिल याचिका को पोषणीय न मानते हुए हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया और कहा कि अवार्ड देने से पहले याची की आपत्ति का निस्तारण नहीं किया गया है। इसलिए आर्बिट्रेशन अधिकरण आपत्ति का सकारण निस्तारण करें।

यह आदेश न्यायमूर्ति एस डी सिंह तथा न्यायमूर्ति सुरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने कैनन डंकरले एण्ड कम्पनी लिमिटेड की तरफ से दाखिल याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है।

राज्य सरकार के अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की पीठ के दीप कांस्ट्रक्शन व भावेन कांस्ट्रक्शन केसों के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि आर्बिट्रेशन कार्यवाही के खिलाफ अनुच्छेद 226 व 227 में याचिका पोषणीय नहीं है। आर्बिट्रेशन एक्ट की धारा 34 में अवार्ड के खिलाफ जिला जज के समक्ष आपत्ति की जा सकती है। इसलिए हाईकोर्ट को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। अभी तक अवार्ड जारी नहीं किया गया है। कोर्ट ने तथ्यों व न्यायिक निर्णयों पर विचार करते हुए हस्तक्षेप से इंकार कर दिया किंतु आर्बिट्रेशन अधिकरण को याची की आपत्ति तय करने का निर्देश दिया है।

याचिका में आर्बिट्रेशन अधिकरण माइक्रो एण्ड स्माल इंटरप्राइजेज फैसिलिटेशन काउंसिल मेरठ के 25 जुलाई 23 के आदेश को चुनौती दी गई थी। जिसके तहत आपत्ति तय की गई थी, किन्तु कुछ पर फैसला नहीं दिया।

सरकारी वकील ने कहा कि आर्बिट्रेशन एक्ट एक स्वतंत्र कानून हैं और उसकी खुद की कार्यवाही प्रक्रिया निर्धारित है। इसलिए सामान्य प्रक्रिया इस पर लागू नहीं होगी। यदि आपत्ति अस्वीकार की गई है तो अवार्ड के साथ चुनौती दी जा सकती है। याचिका दायर नहीं की जा सकती।