PESA Act Jharkhand : पेसा कानून पर सुस्त सरकार, हाईकोर्ट ने फिर पूछा ,आदिवासियों को उनका हक़ कब मिलेगा?'
News India Live, Digital Desk: झारखंड के आदिवासी समुदायों को जल, जंगल और जमीन पर उनका वास्तविक अधिकार देने वाले पेसा (PESA) कानून को लागू करने में हो रही सालों की देरी पर झारखंड हाईकोर्ट ने एक बार फिर हेमंत सोरेन सरकार पर गहरी नाराजगी जताई है। अदालत ने सरकार के ढुलमुल रवैये पर सख्ती दिखाते हुए तीन सप्ताह के भीतर एक विस्तृत स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है।इस रिपोर्ट में सरकार को साफ-साफ बताना होगा कि इस महत्वपूर्ण कानून को ज़मीनी स्तर पर लागू करने के लिए अब तक क्या ठोस कदम उठाए गए हैं।
यह निर्देश चीफ़ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की खंडपीठ ने 'आदिवासी बुद्धिजीवी मंच' की ओर से दायर एक अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। दरअसल, हाईकोर्ट ने इसी साल 29 जुलाई 2024 को सरकार को दो महीने के भीतर पेसा नियम लागू करने का स्पष्ट आदेश दिया था। लेकिन, सरकार उस समय-सीमा का पालन करने में विफल रही, जिसके बाद यह अवमानना याचिका दायर की गई।के लिए जीवनरेखा?
पेसा यानी 'पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996', संसद द्वारा पारित एक ऐतिहासिक कानून है, जिसका मुख्य उद्देश्य आदिवासी बहुल क्षेत्रों (पांचवीं अनुसूची वाले इलाकों) में पारंपरिक ग्राम सभाओं को सशक्त बनाना है। यह कानून आदिवासियों की पारंपरिक स्वशासन प्रणाली को मजबूत करता है और उन्हें अपने प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण का अधिकार सौंपता है। इसके तहत, किसी भी गांव में जमीन अधिग्रहण, खदानों का आवंटन या कोई भी विकास परियोजना शुरू करने से पहले ग्राम सभा की सहमति लेना अनिवार्य होता है।झारखंड जैसे राज्य के लिए, जहाँ आदिवासियों की एक बड़ी आबादी बसती है, यह कानून उनकी संस्कृति, पहचान और आजीविका की रक्षा के लिए एक कवच की तरह है।
सालों से सिर्फ फाइलों में कैद है कानून
यह बेहद चिंताजनक है कि केंद्र द्वारा कानून बनाए जाने के लगभग तीन दशक और झारखंड राज्य के गठन के 24 साल बाद भी, पेसा को उसकी सही भावना के साथ लागू नहीं किया जा सका है। सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि नियमावली का मसौदा कैबिनेट कोऑर्डिनेशन कमेटी को भेजा गया था, जिसने कुछ त्रुटियां बताकर इसे सुधार के लिए पंचायती राज विभाग को वापस भेज दिया है। विभाग अब इसमें सुधार कर इसे फिर से कमेटी को भेजेगा।
हाईकोर्ट की सख्ती से जगी उम्मीद
सरकार के इस सुस्त रवैये पर अदालत ने गहरी नाराजगी जताते हुए कहा कि इस मामले को अनिश्चितकाल तक टाला नहीं जा सकता। हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि जब तक पेसा नियम लागू नहीं हो जाते, तब तक राज्य में बालू और अन्य छोटे खनिजों के खनन आवंटन पर रोक जारी रहेगी।कोर्ट की इस सख्ती ने एक बार फिर यह उम्मीद जगाई है कि शायद अब झारखंड के आदिवासी समुदायों को वह संवैधानिक अधिकार मिल सकेगा, जिसका वे पीढ़ियों से इंतजार कर रहे हैं।
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