जोशीमठ, 28 जून (हि.स.)। वर्ष 2021 में रेणी-तपोवन की प्रलयंकारी त्रासदी में रेणी से जोशीमठ तक कई पैदल व मोटर पुल बह गए थे, सीमावर्ती सड़क होने के कारण मोटर पुल तो बने लेकिन पैदल पुलों की स्थिति जस की तस है। रेणी-तपोवन की आपदा मे उत्तराखंड के प्रथम प्रयाग विष्णुप्रयाग का पैदल पुल भी बह गया था जो तीन वर्ष बीतने के बाद भी नहीं बन सका। बद्रीनाथ तक सड़क निर्माण से पूर्व विष्णुप्रयाग पैदल पुल से ही श्री बद्रीनाथ धाम की यात्रा संचालित होती थी, श्रद्धालु जोशीमठ में भगवान नरसिंह के दर्शनों के उपरांत इसी पैदल पुल से आवागमन करते थे।
तपोवन आपदा की भेंट चढ़े 90 मीटर स्पान के इस पुल के नव निर्माण के बाबत लोनिवि के ईई राजबीर सिंह चौहान बताते हैं कि रैणी आपदा के बाद प्रथम चरण के कार्यों के लिए एस्टीमेट शासन को भेजा गया था जिसकी अभी तक स्वीकृति नहीं मिल सकी, प्रथम चरण के एस्टीमेट स्वीकृति के बाद ही डीपीआर तैयार की जा सकेगी।
सड़क निर्माण के बाद भी इस पैदल पुल का महत्व कम नहीं हुआ, पैदल यात्रा करने वाले श्रद्धालु, साधू संत भी इस पुल से आवागमन करते रहे हैं,और जीर्ण शीर्ण होने पर इसका नव निर्माण भी हुआ जो 2021 की आपदा के भेंट चढ़ गया।
इस पैदल पुल का महत्व इसलिए भी था कि हाथी पहाड़ एरिया मे चट्टान टूटने से सड़क मार्ग जब कई दिनों तक अवरुद्ध रहा तो स्थानीय प्रशासन ने सेना व आईटीबीपी की मदद से श्री बद्रीनाथ धाम एवं श्री हेमकुण्ड साहिब व लोकपाल के श्रद्धांलुओं का इसी पुल के जरिये आवागमन कराया।
लेकिन रेणी-तपोवन की आपदा के तीन वर्ष बीत जाने के बाद भी इस पुल के निर्माण की दिशा मे कोई कार्यवाही तक शुरू नहीं हो सकी। हालांकि पुल क्षतिग्रस्त होने के बाद यह सुझाव भी आया था कि यदि पैदल पुल के ही स्थान पर हल्का वाहन पुल का निर्माण किया जाता है तो नर्सिंह मंदिर जोशीमठ होते हुए बद्रीनाथ के लिए हल्के वाहनों का आवागमन हो सकता है।
समझा जा सकता है कि आपदा में तहस नहस हुए पुल के नव निर्माण के लिए जब तीन वर्ष से स्वीकृति नहीं मिली तो जोशीमठ भू-धसाव आपदा को तो अभी मात्र 17 महीने ही बीते हैं, 17 महीनों में ही यहाँ के ट्रीटमेंट सहित अन्य कार्यों की उम्मीद करना जल्दबाजी होगा।
जोशीमठ भू-धसाव आपदा की बात करें तो सरकारी मशीनरी चुनावों मे व्यस्त है, और प्रभावित इधर उधर भटक कर दिन गुजार रहे हैं, पर जोशीमठ आपदा का एक दूसरा पहलू भी सामने आया है कुछ प्रभावितों पर तो ”आपदा आई सम्पदा लायी” का प्रचलित उदाहरण फिट बैठ रहा है, यहाँ कई ऐसे होम स्टे व आवसीय भवन है जिन्हें असुरक्षित की श्रेणी मे चिह्नित करते हुए पूरा मुआवजा भुगतान किया गया, लेकिन न केवल इन असुरक्षित होम स्टे का संचालन बेरोक टोक हो रहा है बल्कि असुरक्षित भवनों पर किरायेदार भी रख लिए गए।
आखिर इस भारी चूक की किन कारणों से अनदेखी हो रही है, वह भी तब जब मानसून दस्तक दे रहा है, ऐसे में यदि इन असुरक्षित श्रेणी के होम स्टे व आवसीय घरों में कोई जन हानि हुई तो शासन प्रशासन की भी जवाबदेही होगी। क्योंकि किसी घटना के घटित होने के बाद यही लोग कहेंगे कि असुरक्षित होमस्टे का संचालन क्यों करने दिया गया और असुरक्षित घरों में लोगों को क्यों रहने दिया? हालांकि सरकार अभी तक असुरक्षित श्रेणी के घरों के विस्थापन के लिए भूमि का रेट भी तय नहीं कर पाई है।
जोशीमठ भू-धसाव आपदा के दौरान भी जब मानकों के विपरीत बने भवनों का मामला सामने आया तो तब भी यही कहा जाने लगा कि जब मानकों के विपरीत निर्माण हो रहा था तब प्रशासन कहां सोया था? मानको के विपरीत निर्माण क्यों होने दिया?
अब देखना होगा कि रैणी आपदा में तबाह हुए विष्णुप्रयाग पुल का कब तक निर्माण हो सकेगा और जोशीमठ भू धसाव प्रभावितों का भविष्य क्या होगा? इस पर प्रभावित मतदाताओं की नजरें भी रहेंगी।