पाकिस्तान की आर्थिक हालत बेहद नाजुक है. विदेशी मुद्रा की कमी के कारण जब जीवन की दैनिक आवश्यकता की चीजें भी खरीदना मुश्किल हो जाता है, तब अंतर्राष्ट्रीय निगरानी कोष (आईएमएफ) जैसे विश्व संगठनों को ऋण के लिए हाथ मिलाना पड़ता है। महँगाई और बेरोज़गारी ने अपना कहर बरपाया है, लेकिन परमाणु हथियारों का उन्माद कम नहीं हुआ है।
परमाणु हथियारों पर नियंत्रण के लिए अभियान चलाने वाली संस्था आइकॉन के मुताबिक, दुनिया के परमाणु संपन्न देश परमाणु शोध पर अपना खर्च बढ़ा रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान ने 1 अरब डॉलर की रकम खर्च की है एक साल में परमाणु हथियारों पर. साल 2023 में परमाणु लागत 13 फीसदी बढ़कर 91.4 अरब डॉलर हो गई है. अमेरिका के बाद परमाणु हथियारों पर खर्च करने के मामले में चीन 11.9 अरब डॉलर के साथ दूसरे स्थान पर है। परमाणु अनुसंधान खर्च में रूस 8.3 बिलियन डॉलर के साथ तीसरे स्थान पर है, इसके बाद 6.1 बिलियन डॉलर के साथ फ्रांस है।
2023 में 2.7 अरब डॉलर खर्च करने के साथ भारत सातवें स्थान पर है, भारत के बाद इजरायल परमाणु हथियारों पर 1.1 अरब डॉलर खर्च कर रहा है। भारत की परमाणु हथियार और अनुसंधान क्षमताएं पाकिस्तान से दोगुनी हैं। हथियार बाजार पर नजर रखने वाले स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक, भारत के पास 172 परमाणु बम बनाने की क्षमता है या बना चुका है, जबकि पाकिस्तान के पास यह क्षमता 170 परमाणु बम है।