
पाकिस्तान से जुड़ी हालिया घटनाओं में मुर्शिदाबाद हिंसा के बाद पाकिस्तान के मीडिया में एक नई चेतावनी सुनाई दे रही है। पाकिस्तान के मीडिया और यू-ट्यूब चैनलों के अनुसार, अगर भारत में मुस्लिम कट्टरपंथियों ने हिंदुओं को उकसाना जारी रखा, तो भारत के हिंदू भी भगवान शिव की तरह तांडव कर सकते हैं। ये बयान पाकिस्तान के मीडिया में गूंज रहे हैं और पाकिस्तान में हिंदू समुदाय से जुड़ी इस चेतावनी को लेकर काफी चर्चा हो रही है।
मुर्शिदाबाद हिंसा और पाकिस्तान में बढ़ी चिंता
पाकिस्तानी मीडिया में यह सवाल उठ रहा है कि आखिर क्यों मुर्शिदाबाद हिंसा के बाद पाकिस्तान में भगवान शिव का नाम लिया जाने लगा। पाकिस्तानी यू-ट्यूबर ने कहा कि अगर मुस्लिम कट्टरपंथियों ने हिंदुओं को उकसाना बंद नहीं किया, तो भारत में हिंदू भी शिव की तरह तांडव कर सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अगर भारत के 100 करोड़ हिंदू तांडव करने लगते हैं तो पाकिस्तान के पास उनकी सुरक्षा के लिए कोई जगह नहीं होगी।
वक्फ कानून पर पाकिस्तान का विरोध
वहीं, पाकिस्तान में वक्फ कानून को लेकर भी एक बड़ी बहस हो रही है। पाकिस्तान के एक यू-ट्यूबर ने वक्फ कानून को लेकर भारत में हो रहे विरोध पर भी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि अगर भारत में वक्फ कानून में संशोधन किया जाता है तो यह मुस्लिम समुदाय के पक्ष में है और इसका विरोध नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन पाकिस्तान के कुछ लोगों का कहना है कि वक्फ कानून का दुरुपयोग किया जा रहा था और इससे जुड़े कई मुद्दों को लेकर उनकी आलोचना भी हो रही है।
वक्फ बोर्ड और उसका दुरुपयोग
पाकिस्तान के डिफेंस एक्सपर्ट कमर चीमा ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय दी और बताया कि वक्फ बोर्ड के पास भारत में तीसरे नंबर की सबसे बड़ी ज़मीन है। हालांकि, अधिकतर ज़मीन का कोई कागज या दस्तावेज नहीं है, जो साबित कर सके कि यह जमीन वक्फ को कैसे मिली। उन्होंने कहा कि वक्फ बोर्ड का जितना दुरुपयोग हुआ है, उससे अब भारत में इस पर संशोधन का विचार किया जा रहा है।
विरोध और मजहबी राजनीति
पाकिस्तान के कुछ पत्रकारों और एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत के मुसलमानों को वक्फ कानून के संशोधन का विरोध नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह उनके पक्ष में है। लेकिन भारत में कुछ लोग विरोध के नाम पर ISIS के झंडे लहरा रहे हैं और फिलीस्तान को अपना समर्थन देने की बात कर रहे हैं। इस पर पाकिस्तान में भी काफी विवाद है, क्योंकि कुछ लोग इसे मजहबी राजनीति से जोड़कर देखते हैं।
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