ब्रिटेन द्वारा भारत से 1765-1900 के बीच 64,820 अरब डॉलर की लूट: ऑक्सफैम रिपोर्ट का खुलासा

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ब्रिटेन ने 1765 से 1900 तक के औपनिवेशिक काल में भारत से 64,820 अरब अमेरिकी डॉलर की संपत्ति का शोषण किया। इस विशाल धनराशि में से 33,800 अरब डॉलर ब्रिटेन के सबसे अमीर 10 प्रतिशत लोगों के पास गया। यह खुलासा ऑक्सफैम इंटरनेशनल की ताजा वैश्विक असमानता रिपोर्ट में हुआ है। यह रिपोर्ट, जिसका शीर्षक ‘टेकर्स, नॉट मेकर्स’ है, विश्व आर्थिक मंच (WEF) की वार्षिक बैठक से ठीक पहले जारी की गई।

आधुनिक असमानता की जड़ें उपनिवेशवाद में

ऑक्सफैम ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि ऐतिहासिक औपनिवेशिक युग के दौरान फैली असमानता और लूट का प्रभाव आज भी आधुनिक दुनिया को आकार दे रहा है। रिपोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि औपनिवेशिक युग ने एक अत्यधिक असमान वैश्विक प्रणाली को जन्म दिया, जिसमें नस्लवाद और ग्लोबल साउथ (दक्षिणी गोलार्ध) से धन के निरंतर दोहन ने ग्लोबल नॉर्थ (उत्तरी गोलार्ध) के सबसे अमीर लोगों को लाभान्वित किया।

रिपोर्ट में बताया गया कि 1765 से 1900 के बीच, भारत से ब्रिटेन के सबसे धनी 10 प्रतिशत लोगों ने आज के हिसाब से 33,800 अरब अमेरिकी डॉलर की संपत्ति निकाली। इस राशि को समझने के लिए ऑक्सफैम ने एक दिलचस्प तुलना दी: अगर लंदन के सतही क्षेत्र को 50 पाउंड के नोटों से ढका जाए, तो यह राशि चार गुना अधिक मूल्य की होगी।

100 वर्षों का औपनिवेशिक शोषण

1765 से 1900 तक, ब्रिटेन ने भारत को अपने सबसे बड़े आर्थिक संसाधन के रूप में इस्तेमाल किया। ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार, उपनिवेशवाद का मुख्य लाभ सिर्फ सबसे अमीर लोगों को ही नहीं हुआ, बल्कि इससे उभरते मध्यम वर्ग को भी फायदा मिला। हालांकि, इसके परिणामस्वरूप भारत में गहरी असमानताएं पैदा हुईं।

ऑक्सफैम ने उपनिवेशवाद के प्रभावों को “जहरीले पेड़ का फल” करार दिया। उन्होंने कहा कि इस युग ने जाति, धर्म, भाषा, लिंग और भूगोल के आधार पर विभाजन को और गहरा किया। ये विभाजन न केवल उस समय के समाज में बढ़े, बल्कि आधुनिक भारत की संरचना को भी प्रभावित करते हैं।

भाषा और शिक्षा में असमानता

ऑक्सफैम ने भारतीय शिक्षा प्रणाली में औपनिवेशिक प्रभावों की ओर इशारा किया। रिपोर्ट के अनुसार, भारत की केवल 0.14 प्रतिशत मातृभाषाओं को शिक्षण माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जबकि केवल 0.35 प्रतिशत भाषाओं को स्कूलों में पढ़ाया जाता है। यह भाषाई असमानता ब्रिटिश उपनिवेशवाद के दौरान शुरू हुई, जब केवल चुनिंदा भाषाओं को प्राथमिकता दी गई।

धर्म, जाति और लैंगिक शोषण

रिपोर्ट में बताया गया कि औपनिवेशिक शासन के दौरान धर्म, जाति, लैंगिकता और भूगोल जैसे विभाजनों का बड़े पैमाने पर शोषण किया गया। इन विभाजनों को स्थायी और जटिल बनाने के लिए नीतियां बनाई गईं। इसने भारतीय समाज में न केवल भेदभाव बढ़ाया, बल्कि इन समस्याओं को आने वाली पीढ़ियों के लिए और भी जटिल बना दिया।