ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने केंद्र की भारतीय जनता पार्टी (BJP) नीत एनडीए सरकार पर चीन नीति को लेकर कड़ा सवाल उठाया है। उन्होंने पूछा कि क्या पूर्वी लद्दाख के गलवान, हॉट स्प्रिंग, गोगरा, पैंगोंग और कैलाश रेंज में भारतीय सैनिकों के गश्त अधिकार को बहाल करने की कोई ठोस योजना है।
गलवान और यथास्थिति पर सवाल
ओवैसी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में आरोप लगाया कि सरकार ने पूर्वी लद्दाख में अप्रैल 2020 की यथास्थिति बहाल करने की उम्मीद छोड़ दी है। उन्होंने पूछा,”क्या हमारे पास गलवान और अन्य विवादित क्षेत्रों में अपने सैनिकों के गश्त अधिकार बहाल कराने की कोई योजना है, या यह मुद्दा पूरी तरह भुला दिया गया है?”
चीन के साथ कूटनीति पर कटाक्ष
ओवैसी ने चीन के होतान प्रांत में दो नए काउंटी के गठन और ब्रह्मपुत्र पर बनाए जा रहे बांध को लेकर सरकार की प्रतिक्रिया को अपर्याप्त बताया। उन्होंने कहा कि भारत सरकार का हालिया विरोध और अनुरोध चीन पर कोई असर नहीं डाल पाएगा।
उन्होंने तंज कसते हुए कहा,”मोदी सरकार की कूटनीति केवल अमेरिका की प्रथम महिला जिल बाइडन को महंगे हीरे उपहार में देने तक सीमित रह गई है।”
भारत की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा पर गंभीर आरोप
ओवैसी ने भारत की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा प्रबंधन पर भी सवाल उठाए। उन्होंने मणिपुर और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में बिगड़ती स्थिति को कुप्रबंधन का नतीजा बताया। साथ ही, सशस्त्र बलों के राजनीतिकरण को बाह्य सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा करार दिया।
उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार संसद में इन मुद्दों पर बहस की अनुमति नहीं देती और राष्ट्रीय सुरक्षा के गंभीर मामलों पर चुप्पी साधे हुए है।
चीन को लेकर भारत का कड़ा विरोध
भारत सरकार ने हाल ही में होतान प्रांत में दो नए काउंटी के गठन को लेकर चीन के खिलाफ कड़ा विरोध दर्ज कराया। भारत ने इसे “अवैध और जबरन कब्जा” करार देते हुए कहा कि ऐसे कदम क्षेत्र में चीन के दावे को वैधता प्रदान नहीं करेंगे।
जिल बाइडन को दिए महंगे उपहार का जिक्र
ओवैसी ने अमेरिकी विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अमेरिका की प्रथम महिला जिल बाइडन को 20,000 अमेरिकी डॉलर मूल्य का हीरा भेंट किया गया, जो 2023 में बाइडन परिवार को किसी भी विश्व नेता द्वारा दिया गया सबसे महंगा उपहार था।
ओवैसी ने इसे सरकार की प्राथमिकताओं पर सवाल उठाने का आधार बनाते हुए कहा कि यह दिखाता है कि कूटनीति किस स्तर तक सिमटकर रह गई है।