‘वन नेशन वन इलेक्शन’: क्या 2029 में फिर से एक साथ चुनाव की परंपरा लौटेगी?

Aaj Ka Explainer Cover 12 Dec 17

1951-52 में आजाद भारत का पहला चुनाव हुआ। उस समय लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते थे। 1957, 1962 और 1967 तक यह परंपरा कायम रही। लेकिन 1969 में राजनीतिक अस्थिरता के चलते बिहार में मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री की सरकार गिर गई, और विधानसभा भंग हो गई। 1970 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लोकसभा के चुनाव भी निर्धारित समय से 11 महीने पहले कराए। इसके बाद से लोकसभा और विधानसभा चुनावों का शेड्यूल अलग-अलग हो गया।

अब खबरें आ रही हैं कि 2029 में एक बार फिर ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ की परंपरा शुरू हो सकती है। मोदी सरकार इस विचार को साकार करने के लिए विधेयक पेश करने की तैयारी कर रही है। लेकिन इसके फायदे, नुकसान, और व्यावहारिक अड़चनें क्या हैं? आइए, विस्तार से जानते हैं।

‘वन नेशन वन इलेक्शन’ क्या है?

‘वन नेशन वन इलेक्शन’ का मतलब है कि देश के लोकसभा, विधानसभा और निकाय चुनाव एक साथ कराए जाएं। इसका अर्थ यह होगा कि मतदाता एक ही दिन, एक ही समय पर (या चरणबद्ध तरीके से) लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए वोट डालेंगे। इसके साथ ही, स्थानीय निकाय चुनाव भी उसी समय कराए जा सकते हैं।

‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के लिए अब तक क्या हुआ है?

2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद इस विचार पर चर्चा शुरू हुई। कई रिपोर्ट्स और विशेषज्ञों की राय ली गई। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले लॉ कमीशन ने भी इस विषय पर एक रिपोर्ट पेश की। इसके बाद, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई, जिसने कई सुझाव दिए।

कोविंद पैनल के सुझाव

  1. 2029 तक सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा चुनाव के साथ समन्वित किया जाए।
  2. अगर किसी राज्य की विधानसभा भंग हो जाए या सरकार गिर जाए, तो शेष कार्यकाल के लिए नए चुनाव कराए जा सकते हैं।
  3. पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाएं। उसके बाद 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकायों के चुनाव कराए जाएं।
  4. चुनाव आयोग सिंगल वोटर लिस्ट और वोटर आईडी कार्ड तैयार करे।
  5. एक साथ चुनाव के लिए उपकरणों, जनशक्ति, और सुरक्षा बलों की एडवांस प्लानिंग की जाए।

कैबिनेट की मंजूरी के बाद आगे क्या होगा?

कैबिनेट की मंजूरी के बाद यह बिल संसद में पेश किया जाएगा। फिर इसे जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (JPC) के पास भेजा जाएगा, जो सभी राजनीतिक दलों के साथ चर्चा करेगी। संविधान संशोधन के लिए इसे लोकसभा और राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत से पारित करना होगा। इसके बाद राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने पर यह कानून बन जाएगा।

2029 तक ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ लागू होने की संभावनाएं

विशेषज्ञों के अनुसार, ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ लागू करने में कई अड़चनें हैं:

  1. राज्यों की सहमति: नॉन-BJP सरकार वाले राज्य इसका विरोध कर सकते हैं।
  2. संवैधानिक बदलाव: इसके लिए संविधान के कई प्रावधानों में संशोधन करना होगा।
  3. लॉजिस्टिक्स: पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए पर्याप्त EVMs, सुरक्षा बल और कर्मचारियों की आवश्यकता होगी।
  4. असमय भंग हुई विधानसभाएं: अगर लोकसभा या विधानसभा का कार्यकाल समय से पहले खत्म हो जाए, तो स्थिति जटिल हो जाएगी।

मोदी सरकार क्यों चाहती है ‘वन नेशन वन इलेक्शन’?

  1. चुनाव खर्च में कमी: बार-बार चुनाव कराने से सरकारी संसाधनों पर भारी खर्च होता है।
  2. विकास में बाधा: आचार संहिता के कारण विकास कार्यों पर रोक लग जाती है।
  3. राजनीतिक लाभ: लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने से BJP को फायदा मिल सकता है, खासकर उन राज्यों में जहां मोदी का प्रभाव अधिक है।

विपक्ष का विरोध क्यों है?

  1. अलग-अलग मुद्दे: राष्ट्रीय और राज्य स्तर के मुद्दे अलग-अलग होते हैं। एक साथ चुनाव से स्थानीय मुद्दे दब सकते हैं।
  2. जवाबदेही में कमी: बार-बार चुनाव होने से सरकारों की जनता के प्रति जवाबदेही बनी रहती है।
  3. संवैधानिक जटिलताएं: अगर लोकसभा भंग हो जाए, तो राज्यों के चुनाव का क्या होगा?

‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के समर्थन में तर्क

  1. विकास में तेजी: बार-बार चुनाव की वजह से आचार संहिता लागू होती है, जिससे विकास कार्य रुक जाते हैं।
  2. खर्च में कमी: चुनावों पर होने वाला खर्च कम हो जाएगा।
  3. सरकारी कार्य में बाधा नहीं: एक साथ चुनाव होने से सरकारें बिना किसी रुकावट के काम कर पाएंगी।

‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के विरोध में तर्क

  1. स्थानीय मुद्दों की उपेक्षा: एक साथ चुनाव होने से राज्य के मुद्दे राष्ट्रीय मुद्दों के साए में दब सकते हैं।
  2. सत्ता का केंद्रीकरण: केंद्र सरकार का दबदबा बढ़ सकता है, जिससे संघीय ढांचा कमजोर हो सकता है।
  3. संवैधानिक संकट: अगर किसी राज्य की सरकार समय से पहले गिर जाए, तो पूरे सिस्टम में गड़बड़ी हो सकती है।

BJP की राजनीतिक मंशा क्या हो सकती है?

विशेषज्ञों का मानना है कि BJP ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के जरिए विपक्षी दलों को कमजोर करना चाहती है। छोटे दलों के पास संसाधन और कार्यकर्ता सीमित होते हैं, जिससे उन्हें एक साथ चुनाव लड़ने में दिक्कत होती है। इसके अलावा, मोदी का राष्ट्रीय चेहरा विधानसभा चुनावों में भी BJP को फायदा दिला सकता है।