जबलपुर , 22 मई (हि.स.) संस्कारधानी में आए 22 मई 1997 के विनाशकारी भूकंप ने आज भी लोगों को चैन से नहीं सोने दिया। इस विनाशकारी भूकंप के 27 साल हो गए हैं परंतु उसकी भयावह यादें अभी भी लोगों के जेहन में है। इस भूकंप का सबसे ज्यादा असर बरेला के पास कोसमघाट घाना आदि क्षेत्रों में हुआ था। वहीं शहर में कच्चे और पक्के मकान के गिरने से लोग बेघर हो गए थे। कई लोगों ने अपने परिजनों को खो दिया इसके साथ ही कई लोगों का आशियाना हमेशा के लिए छिन गया था। उस विनाशकारी भूकंप को याद करते हुए आज भी लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। 54 ऐसे लोग थे जो उसे रात सोए परंतु जिन्होंने कभी सुबह नहीं देखी और काल के गाल में समा गए। 22 मई कि वह खतरनाक सुबह जिसमें 4:20 पर भूकंप आया था आज भी लोगों को याद है। भूकंप की बरसी पर आपदा प्रबंधन केवल खाना पूर्ति करता है। दिखावे के तौर पर होमगार्ड की गतिविधियां और थोड़ा बहुत प्रचार प्रसार कर प्रशासन अपनी इति श्री कर लेता है। जबकि भूकंप जोन में स्थित जबलपुर और आसपास का क्षेत्र आज भी खतरे के मुहाने पर बैठा है।
शहर में बन रही बड़ी-बड़ी अपार्टमेंट और हाईराईज बिल्डिंग भूकंपरोधी मटेरियल से बन रहे हैं या नहीं यह जानने की प्रबंधन को फुर्सत नहीं है। वहीं भूकंप जोन में स्थित जबलपुर का सबसे विशाल बरगी बांध जो कि भूकंप की स्थिति में खतरे का सबब बन सकता है उसके बचाव के लिए प्रबंधन ने क्या उचित इंतजाम किए हैं। इस बात की जानकारी केवल कागजों में है। जबलपुर और आसपास का क्षेत्र भूकंप जोन है यह इस बात से साबित होता है कि पड़ोसी जिले सिवनी में अभी भी चाहे जब भूकंप के झटके आते रहते हैं। जबलपुर की पहाड़ियों पर लगा सिस्मोग्रफ इस बात का गवाह है।