नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा है कि जम्मू-कश्मीर में मौजूदा हालात स्वाभाविक रूप से सामान्य नहीं हैं, बल्कि जबरदस्ती लागू किए गए हैं। उन्होंने केंद्र सरकार के उस दावे को खारिज कर दिया, जिसमें अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद कश्मीर में “सामान्य स्थिति” होने की बात कही गई थी।
साल में दो बार होगी दसवीं की बोर्ड परीक्षा, छात्र और विशेषज्ञ क्या सोचते हैं?
जबरन थोपी गई स्थिति: उमर अब्दुल्ला
दिल्ली में एक मीडिया कार्यक्रम के दौरान उमर अब्दुल्ला ने कहा कि अगर हालात वास्तव में सामान्य होते, तो यह स्थिति स्थायी होती, लेकिन जबरदस्ती लागू किए गए हालात लंबे समय तक नहीं टिक सकते। उन्होंने दावा किया कि सुरक्षा बलों और आम जनता को भी इस “सामान्यता” पर भरोसा नहीं है।
जामिया मस्जिद बंद करने पर सवाल
अब्दुल्ला ने कश्मीर घाटी में कानून-व्यवस्था को लेकर भी चिंता जाहिर की और श्रीनगर की ऐतिहासिक जामिया मस्जिद को शब-ए-बरात के मौके पर बंद किए जाने की आलोचना की। उन्होंने कहा,
“अगर सरकार को लगता कि हालात सामान्य हैं, तो वे मीरवाइज उमर फारूक को उनके ससुर के जनाजे की नमाज पढ़ाने से नहीं रोकते। प्रशासन ने कानून-व्यवस्था का हवाला दिया, लेकिन अगर सब कुछ सामान्य होता, तो यह स्थिति पैदा ही नहीं होती।”
अनुच्छेद 370 पर नरम पड़े उमर अब्दुल्ला?
2019 में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया, जिससे उपराज्यपाल को अधिक प्रशासनिक शक्तियां मिल गईं। इस पर अब्दुल्ला ने कहा कि बिना जनता को शामिल किए प्रशासनिक व्यवस्था ज्यादा दिन नहीं चल सकती।
गौरतलब है कि हाल के दिनों में अब्दुल्ला का रुख केंद्र सरकार के प्रति नरम दिखाई दिया है। उन्होंने पहले जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति बहाल करने की अपनी पुरानी मांग पर भी कुछ हद तक नरमी दिखाई और कहा था कि “इतने नासमझ नहीं हैं कि अनुच्छेद 370 की बहाली की उम्मीद करें।”
कश्मीर की जमीनी हकीकत अलग?
उमर अब्दुल्ला ने 2010 की अशांति का जिक्र करते हुए कहा कि कश्मीर में विरोध प्रदर्शनों के दौरान 200 से अधिक युवाओं की मौत हुई थी। उन्होंने दावा किया कि केंद्र सरकार लगातार यह प्रचारित कर रही है कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद हड़तालें और अलगाववादी गतिविधियां कम हुई हैं, लेकिन जमीनी हकीकत इससे अलग है।
उनके बयान से साफ है कि कश्मीर में स्थिति को लेकर सियासी बहस अब भी जारी है और केंद्र सरकार के दावों पर सवाल उठ रहे हैं।