निप्पॉन इंडिया म्यूचुअल फंड, जिसे पहले रिलायंस म्यूचुअल फंड के नाम से जाना जाता था, राणा कपूर परिवार के स्वामित्व वाली मॉर्गन क्रेडिट प्राइवेट लिमिटेड के गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर (एनसीडी) में 950 करोड़ रुपये के निवेश के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की जांच के दायरे में है।
सीबीआई जांच एक बड़ी बहु-एजेंसी जांच का हिस्सा है। इस जांच में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) भी शामिल है। विभिन्न एजेंसियां यस बैंक द्वारा जारी एटी1 बांड में पूर्व में रिलायंस कैपिटल के स्वामित्व वाली कंपनियों द्वारा लगभग 2,850 करोड़ रुपये के संचयी निवेश की जांच कर रही हैं। ये लेन-देन ऐसे समय में हुआ जब रिलायंस कैपिटल एसेट मैनेजमेंट कंपनी निप्पॉन की मूल कंपनी थी। जिसके चलते जांच को रिलायंस होम फाइनेंस, रिलायंस कमर्शियल फाइनेंस तक बढ़ा दिया गया है। सितंबर 2019 में रिलायंस म्यूचुअल फंड का नाम बदलकर निप्पॉन इंडिया म्यूचुअल फंड कर दिया गया। यह पूरा अध्याय दिसंबर 2016 से मार्च 2020 तक को कवर करता है। जब रिलायंस कैपिटल और यस बैंक के स्वामित्व वाली कंपनियों के बीच कुछ लेनदेन बाजार नियामक के संज्ञान में आए। नया अध्याय अप्रैल 2018 में फंड हाउसों द्वारा किए गए निवेश दस्तावेजों और सूचनाओं से संबंधित है। जांच एजेंसी ने 21 दिसंबर को इस संबंध में दस्तावेज और जानकारी मांगी थी. इस बीच, इस साल अगस्त में पूंजी बाजार निगरानी संस्था ने अनिल अंबानी, उनके बेटे जय अनमोल अंबानी, राणा कपूर और परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी निप्पॉन इंडिया एमएफ और अन्य कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस भेजा। इसमें निप्पॉन इंडिया एमएफ के सीईओ संदीप सिक्का, फिक्स्ड इनकम सीआईओ अमित त्रिपाठी, मुख्य अधिकारी-संचालन और ग्राहक सेवा मिलिंद नेसारिकर भी शामिल हैं।
जांच के आधार पर सेबी द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस में आरोप लगाया गया कि यस बैंक द्वारा जारी एटी1 बांड में रिलायंस म्यूचुअल फंड और उस समय रिलायंस कैपिटल के नाम से जानी जाने वाली कंपनी द्वारा 2,850 करोड़ रुपये का संयुक्त निवेश किया गया था। इन निवेशों का एक हिस्सा मॉर्गन क्रेडिट प्राइवेट लिमिटेड द्वारा जारी एनसीडी में किया गया था। सेबी के मुताबिक यह एक तरह की लेनदेन व्यवस्था थी. क्योंकि जनवरी 2017 में यस बैंक ने रिलायंस होम फाइनेंस को 500 करोड़ रुपये की सुविधा उपलब्ध कराई थी. फिर अक्टूबर 2017 में भी ऐसा हुआ.