विदेशी नागरिक के भारत में अवैध घुसपैठ को लेकर सऊदी-बांग्लादेश के दूतावासों को नोटिस

ग्वालियर, 4 जुलाई (हि.स.)। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंडपीठ ने एक विदेशी नागरिक के भारत में अवैध तरीके से घुसपैठ मामले में उससे संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी मांगी है और इसके लिए सऊदी अरब और बांग्लादेश दूतावास को नोटिस जारी किया है। यह नोटिस उसी विदेशी नागरिक की याचिका पर जारी किये गए हैं, जिसे ग्वालियर पुलिस ने 2014 में गिरफ्तार किया था।

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने सउदी अरब और बांग्लादेश के दूतावासों को यह नोटिस गैरकानूनी तरीके से भारत में घुसे विदेशी नागरिक की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए गए। गैरकानूनी तरीके से भारत में घुसे विदेशी अहमद अलमक्की की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर उच्च न्यायालय ग्वालियर खंडपीठ ने बुधवार को सुनवाई की।

दरअसल, अलमक्की को ग्वालियर की पड़ाव थाना पुलिस ने स्टेशन बजरिया से 21 सितंबर 2014 को गिरफ्तार किया था। वह बांग्लादेश के पासपोर्ट पर सिम खरीदने की कोशिश में था। उसके पास से बांग्लादेश का पासपोर्ट, सऊदी अरब का ड्राइविंग लाइसेंस मिला था। उसे तीन साल की सजा हुई, जो 22 अक्टूबर 2017 को पूरी हो चुकी है। सजा पूरा होने के बाद नौ महीने तक केंद्रीय जेल ग्वालियर में रखा गया था, लेकिन 12 जून 2018 को वह सुरक्षाकर्मियों को चकमा देकर हैदराबाद फरार हो गया। फरार होने के बाद 11 दिन बाद पुलिस ने उसे 23 जून 2018 को एक बार फिर गिरफ्तार कर लिया। इस मामले में भी उसे 2021 में तीन साल की सजा सुनाई गई। अलमक्की को इसके बाद डिटेंशन सेंटर में रखा गया है। यहां रहते हुए अलमक्की ने कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका लगाई है। याचिका में उसने अवैध रूप से डिटेंशन सेंटर में रखने के आरोप पुलिस और प्रशासन पर लगाए हैं।

अलमक्की ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में कहा है कि उसे गलत तरीके से हिरासत में रखा गया है। उसने खुद को सऊदी अरब का निवासी बताया और देश वापस भेजने की गुहार लगाई है, लेकिन जब वह पकड़ा गया था, तब उसने पुलिस को पूछताछ में खुद को बांग्लादेशी बताया था। अलमक्की के पास मिले दस्तावेजों में सऊदी अरब का ड्राइविंग लाइसेंस और बांग्लादेश का पासपोर्ट शामिल हैं। अब प्रशासन इस दुविधा में है कि उसे कहाँ भेजा जाये, इसलिए ग्वालियर हाई कोर्ट की युगलपीठ ने अलमक्की की ही याचिका पर सऊदी अरब और बांग्लादेश के दूतावासों को नोटिस जारी कर उनसे अलमक्की के मूलनिवासी होने की जानकारी मांगी है। कोर्ट ने चार सप्ताह का समय दिया है।

क्या है बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका?

बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को कानूनी भाषा में हैबियस कॉपर्स कहा जाता है। इस याचिका का इस्तेमाल हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में तब किया जाता है, जब किसी व्यक्ति को अवैध रूप से कस्टडी में रखा जाए या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा ऐसा कार्य किया जाना, जो अपहरण के दायरे में आता हो।