जमीन का बैनामा लेकर कब्जे के लिए हाईकोर्ट आई महिला को राहत नहीं

प्रयागराज, 18 अप्रैल (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बैनामे से खरीदी जमीन का कब्जा दिलाने व विक्रेता भू स्वामी पर कार्रवाई करने की मांग में दाखिल पीएसी कांस्टेबल की पत्नी की अनुच्छेद 226 में दाखिल याचिका पर हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुए खारिज कर दी है।

कोर्ट ने कहा उसे जमीन पर कब्जा लेने के लिए सिविल कोर्ट में जाना चाहिए था। किंतु अदालत जाने के बजाय वह उन सभी जगहों पर जाकर गुहार लगाई जहां उसे राहत नहीं मिल सकती थी। अंततः हाईकोर्ट की शरण ली। जो कब्जा दिलाने का सिविल वाद निष्पादन की कार्यवाही नहीं कर सकता।

न्यायमूर्ति जे जे मुनीर ने कहा कि माया देवी ने घाटमपुर के गुच्छूपुर गांव में विपक्षी वीर बहादुर सिंह से जमीन का बैनामा लिया। किंतु जब कब्जा लेने पहुंची तो भगा दिया गया। उसने प्रमुख सचिव गृह, जिलाधिकारी कानपुर नगर, पुलिस कमिश्नर कानपुर नगर, एसएचओ घाटमपुर सहित एसडीएम घाटमपुर से शिकायत की। किंतु कोई राहत नहीं मिली। याची का पति लखनऊ में पीएसी कांस्टेबल है। उसने कमांडेन्ट से शिकायत की। कमांडेन्ट ने पुलिस कमिश्नर कानपुर नगर को अग्रसारित कर दिया।

कोर्ट ने कहा इन सभी को कब्जा वापस दिलाने का कोई अधिकार नहीं है। यह अधिकार सिविल कोर्ट को है। कोर्ट ने सिविल कोर्ट की हालत पर भी गम्भीर टिप्पणी की। कहा आये दिन वकीलों की हड़ताल रहती है। न्यायिक काम के लिए बहुत कम समय मिलता है। जज व्यर्थ की शिकायतों से भयाक्रांत रहते हैं। तबादलों का सामना करना पड़ता है। पक्षपात के बेतुके आरोपों को झेलना पड़ता है। उनके लिए अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल स्वतंत्र रूप से करना कठिन होता है। लगातार काम करते रहने से हाईकोर्ट से आदेश पलटने का जोखिम रहता है। जिससे उनके कैरियर को नुकसान पहुंचता है। विवेक से त्वरित राहत देना खतरा मोल लेना है। फिर भी याची को सिविल अदालत में वाद दायर करना चाहिए था। जहां से उसे राहत मिल सकती है। हाईकोर्ट सिविल कोर्ट की शक्ति का इस्तेमाल कर याची की फरियाद नहीं सुन सकता। कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि याची दी गई सलाह पर अमल कर सकती है।