शिमला-धर्मशाला हाईवे: खुशनुमा वादियों के बीच विवाद का नया अध्याय

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शिमला-धर्मशाला हाईवे, जो अपने मनमोहक दृश्यों और पहाड़ी खूबसूरती के लिए जाना जाता है, इन दिनों एक अनोखे विवाद का केंद्र बन गया है। हाईवे को एक बार फिर पत्थरों से बंद कर दिया गया है। खास बात यह है कि इस विवाद के पीछे कोई बड़ा संगठन या समूह नहीं, बल्कि केवल एक व्यक्ति का नाम सामने आ रहा है—राजनकांत शर्मा। आइए, इस पूरे विवाद को विस्तार से समझते हैं।

कौन हैं राजनकांत शर्मा?

यह पहली बार नहीं है जब राजनकांत शर्मा ने शिमला-धर्मशाला हाईवे को बाधित किया हो। कुछ महीने पहले, उन्होंने हाईवे पर चारपाई डालकर विरोध प्रदर्शन किया था। इससे पहले भी वह हाईवे पर अस्थायी दुकान लगाकर अपनी नाराजगी व्यक्त कर चुके हैं।

राजनकांत का बार-बार ऐसा करना लोगों के लिए एक सवाल खड़ा करता है—आखिर वह ऐसा क्यों कर रहे हैं? उनकी इस हरकत के पीछे एक बड़ी वजह है। उनके अनुसार, यह सब उनके भूमि विवाद और प्रशासन के रवैये से जुड़ा है।

राजनकांत शर्मा की मांग क्या है?

राजनकांत शर्मा का दावा है कि शिमला-धर्मशाला हाईवे पर उनकी मां, सीता शर्मा, के नाम 8 बिस्वा जमीन है। उनका कहना है कि 2023 में हुई निशानदेही में यह जमीन उनकी मां के नाम पर पाई गई थी। हालांकि, प्रशासन ने अब तक उन्हें इस जमीन का मुआवजा नहीं दिया है।

राजनकांत की मांग है:

  1. प्रशासन उन्हें उनकी जमीन का उचित मुआवजा दे।
  2. अगर मुआवजा नहीं दिया जा सकता, तो उन्हें दुकान के लिए जमीन दी जाए।
  3. भूमि वापस दी जाए, ताकि वह इसे खुद इस्तेमाल कर सकें।

हालांकि, उनकी ये मांगें प्रशासन द्वारा अनसुनी कर दी गई हैं, जिसके कारण वह बार-बार हाईवे बंद करने को मजबूर हैं।

कैसे शुरू हुआ यह विवाद?

इस विवाद की शुरुआत 2022 में हुई जब बिलासपुर के मंगरोट इलाके में शिमला-धर्मशाला नेशनल हाईवे पर अवैध कब्जा हटाने के लिए प्रशासन ने कार्रवाई की। राजनकांत ने हाईवे पर अपना एक खोखा लगाया था, जिसे प्रशासन ने हटाने का आदेश दिया।

इसके बाद भी राजनकांत ने हाईवे पर अपनी जमीन का दावा करते हुए फिर से खोखा लगा दिया। प्रशासन ने 2023 में दोबारा निशानदेही कराई, जिसमें राजनकांत की मां के नाम 12 बिस्वा जमीन निकली।

प्रशासन की भूमिका और मौजूदा स्थिति

राजनकांत शर्मा के मामले में प्रशासन का रवैया सवालों के घेरे में है।

  1. मुआवजे का मामला: प्रशासन ने अब तक राजनकांत या उनकी मां को मुआवजा नहीं दिया।
  2. समझौते का अभाव: प्रशासन ने उन्हें दुकान लगाने के लिए जमीन देने का विकल्प भी नहीं दिया।
  3. कानूनी पेचीदगियां: विवादित भूमि का निपटारा न होने के कारण समस्या लगातार बनी हुई है।

समाज और प्रशासन के लिए सबक

यह मामला दिखाता है कि भूमि विवादों को नजरअंदाज करना कितना महंगा पड़ सकता है। राजनकांत के बार-बार हाईवे बाधित करने से आम जनता को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। प्रशासन को चाहिए कि वह ऐसे मामलों में समय पर कार्रवाई करे, ताकि जनता और व्यक्तिगत हितों के बीच संतुलन बनाए रखा जा सके।

शिमला-धर्मशाला हाईवे के इस विवाद ने न केवल प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं, बल्कि यह भी दिखाया है कि एक व्यक्ति अपनी जमीन के अधिकारों के लिए किस हद तक जा सकता है। जब तक इस विवाद का समाधान नहीं होता, यह खुशनुमा वादियां भी इस तनाव की छाया से मुक्त नहीं हो पाएंगी।