Mythological Story : रावण और कुंभकर्ण का ऐसा राज़ जो बहुत कम लोग जानते हैं, राम और कृष्ण के हाथों बार-बार क्यों हुई इनकी मौत?

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News India Live, Digital Desk: दशहरा आते ही रावण का पुतला जलाया जाता है, और कुंभकर्ण का नाम गहरी नींद और शक्ति से जोड़ा जाता है. हम सभी जानते हैं कि लंका के राजा रावण और उसका विशालकाय भाई कुंभकर्ण भगवान राम के हाथों मारे गए थे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह सिर्फ उनकी एक कहानी नहीं थी, बल्कि वे पहले भी दो बार पृथ्वी पर जन्म ले चुके थे, और हर बार उनका वध भगवान विष्णु के ही किसी न किसी अवतार ने किया? ये सुनकर हैरानी होगी ना कि रावण और कुंभकर्ण कोई साधारण राक्षस नहीं थे, बल्कि एक ऐसी शापित आत्माएं थीं जिनका सीधा संबंध स्वयं भगवान विष्णु से था!

आइए जानते हैं, लंकापति रावण और कुंभकर्ण की ये हैरान कर देने वाली कहानी:

आखिर कौन थे रावण और कुंभकर्ण अपने पिछले जन्म में?

दरअसल, रावण और कुंभकर्ण कोई और नहीं, बल्कि बैकुंठ में भगवान विष्णु के दो प्रिय द्वारपाल, जय और विजय थे. एक बार सनकादि चार कुमार भगवान विष्णु के दर्शन करने आए. ये ऋषि बालक रूप में थे, लेकिन उनके ज्ञान की कोई सीमा नहीं थी. द्वार पर जय और विजय ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया, क्योंकि भगवान उस समय आराम कर रहे थे. ऋषियों को यह बात बुरी लगी और उन्होंने जय-विजय को शाप दे दिया कि तुम पाताल लोक में जाकर राक्षस योनि में जन्म लोगे!

जब जय और विजय ने माफी मांगी, तो भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने ऋषियों से उन्हें क्षमा करने का अनुरोध किया. शाप तो वापस नहीं हो सकता था, लेकिन भगवान विष्णु ने अपने द्वारपालों को एक विकल्प दिया. उन्होंने कहा कि या तो तुम मेरे भक्त के रूप में सात जन्म पृथ्वी पर लोगे, या फिर मेरे दुश्मन बनकर सिर्फ तीन जन्म लोगे और हर बार मेरे हाथों से ही तुम्हारा उद्धार होगा. जय और विजय ने तीन जन्म वाला रास्ता चुना, क्योंकि वे ज़्यादा समय तक भगवान से दूर नहीं रहना चाहते थे.

और इस तरह तीन जन्मों में भगवान के हाथों मिली मुक्ति:

  1. पहला जन्म: हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप
    जय और विजय ने पहले जन्म में महाबलशाली भाई, हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप के रूप में जन्म लिया. हिरण्याक्ष का वध भगवान विष्णु ने अपने वराह अवतार में किया, जब उसने पृथ्वी को समुद्र में छिपाने की कोशिश की थी. वहीं, हिरण्यकश्यप को मारने के लिए भगवान को नृसिंह अवतार लेना पड़ा, क्योंकि उसने ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान पा लिया था.
  2. दूसरा जन्म: रावण और कुंभकर्ण
    यह वो जन्म था जिसे हम सब जानते हैं. त्रेतायुग में जय ने लंका के दशानन राजा रावण के रूप में और विजय ने उसके छोटे भाई कुंभकर्ण के रूप में जन्म लिया. रावण को मारने के लिए स्वयं भगवान विष्णु को मनुष्य रूप में श्रीराम बनकर पृथ्वी पर आना पड़ा, और कुंभकर्ण को भी श्री राम के ही हाथों मोक्ष मिला. यह दिखाता है कि किस तरह प्रभु राम के हाथों मिली मृत्यु भी एक मुक्ति का मार्ग थी.
  3. तीसरा जन्म: शिशुपाल और दंतवक्र
    तीसरे और अंतिम जन्म में ये दोनों द्वापर युग में शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में पैदा हुए, जो भगवान कृष्ण के कट्टर शत्रु थे. शिशुपाल को भगवान कृष्ण ने भरी सभा में अपने सुदर्शन चक्र से मारा था, जब उसने 100 अपशब्द कहने की हद पार कर दी थी. दंतवक्र को भी कृष्ण ने युद्ध में मार गिराया था.

कितनी अजीब और सुंदर बात है ना, कि जिस रावण को हम बुराई का प्रतीक मानते हैं, वह भी भगवान विष्णु का एक भक्त था जिसे स्वयं भगवान के हाथों ही मोक्ष मिलना तय था. ये कहानियाँ बताती हैं कि ब्रह्मांड की लीलाएँ कितनी अनोखी हैं, और हर पात्र का अपना एक खास महत्व होता है!

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