सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसला का मुस्लिम जमाअत ने किया स्वागत

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बरेली, 14 दिसंबर (हि.स.) । सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 पर दिए गए फैसले को देश में सांप्रदायिक सौहार्द और अमन-चैन के लिए ऐतिहासिक कदम बताया जा रहा है। इस संदर्भ में आल इंडिया मुस्लिम जमाअत की एक महत्वपूर्ण बैठक बरेली स्थित ग्रांड मुफ्ती हाउस में आयोजित की गई। बैठक की अध्यक्षता राष्ट्रीय अध्यक्ष मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने की।

मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी ने अपने संबोधन में कहा कि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991, जिसे नरसिम्हा राव सरकार ने देश में साम्प्रदायिक तनाव रोकने के लिए लागू किया था, के तहत यह प्रावधान किया गया था कि 15 अगस्त 1947 की स्थिति के अनुसार सभी धार्मिक स्थलों की संरचना को बरकरार रखा जाएगा और उसमें किसी प्रकार का बदलाव नहीं किया जाएगा। हालांकि, बाबरी मस्जिद को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया था।

उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के बाद कई साम्प्रदायिक ताकतें अन्य ऐतिहासिक मस्जिदों और दरगाहों को कानूनी विवाद में घसीटने लगीं। ग्यानवापी मस्जिद (वाराणसी), शाही ईदगाह (मथुरा), और अन्य धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद खड़ा किया गया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले ने इस तरह की गतिविधियों पर अंकुश लगाने का काम किया है और सांप्रदायिक तनाव को कम करने की दिशा में अहम कदम उठाया है।

जमाअत के वरिष्ठ सदस्य मौलाना मुजाहिद हुसैन कादरी ने कहा, “मुस्लिम समुदाय हमेशा कानून का सम्मान करता आया है और भविष्य में भी करता रहेगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से मुसलमानों ने राहत की सांस ली है।” वहीं, हाजी नाजिम बेग ने कहा कि यह फैसला देश में शांति और सौहार्द बढ़ाने का काम करेगा।

बैठक में जमाअत के सदस्यों ने एक स्वर में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया और इसे देश के लिए सकारात्मक पहल करार दिया। इस अवसर पर मोहम्मद जुहैब अंसारी, रोमान अंसारी, हसीब खां, मौलाना अबसार रज़ा, साहिल रज़ा, इश्तियाक अहमद, हाफिज अब्दुल वाहिद नूरी, खलील कादरी और मौलाना फारूक रजवी सहित कई प्रमुख लोग उपस्थित रहे।