Murudeshwar of Ramayana period: रावण के क्रोध से उपजे इस शिवलिंग का अद्भुत रहस्य

Post

News India Live, Digital Desk: Murudeshwar of Ramayana period:  कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले के भटकल तालुक में कंडुका पहाड़ी पर स्थित मुरुदेश्वर मंदिर, भगवान शिव को समर्पित एक ऐसा दिव्य स्थल है, जो तीन ओर से विशाल अरब सागर से घिरा हुआ है. यह मंदिर न केवल अपनी मनमोहक प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसका इतिहास रामायण काल से जुड़ा एक रहस्य भी समेटे हुए है, जिसका सीधा संबंध लंकापति रावण और भगवान शिव के 'आत्मलिंग' से है. यहां स्थापित शिव की 123 फीट ऊंची भव्य प्रतिमा, जिसे दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची शिव प्रतिमा माना जाता है, दिनभर सूर्य की किरणों से जगमगाती रहती है, जिससे इसका सौंदर्य और भी बढ़ जाता है.

रावण और आत्मलिंग का रहस्य
इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा शिव पुराण में विस्तृत रूप से वर्णित है.  मान्यताओं के अनुसार, लंका के राजा रावण ने अमरत्व और असीमित शक्ति प्राप्त करने की कामना से भगवान शिव की कठोर तपस्या की.  रावण की भक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने उसे 'आत्मलिंग' प्रदान किया, जो अमरता का प्रतीक था. शिव ने आत्मलिंग देते हुए रावण के सामने एक शर्त रखी थी कि इसे लंका ले जाते समय उसे कहीं भी धरती पर नहीं रखना चाहिए, क्योंकि यदि यह एक बार भूमि पर रख दिया गया, तो वहीं स्थापित हो जाएगा.  देवताओं को भय था कि रावण यदि आत्मलिंग के साथ अमरता प्राप्त कर लेता है, तो वह पृथ्वी पर अत्यधिक उत्पात मचाएगा.इस पर नारद मुनि के कहने पर भगवान विष्णु ने अपनी माया से गोधूलि बेला (सूर्यास्त) का भ्रम उत्पन्न किया, ताकि रावण संध्या वंदना करने पर विवश हो जाए.जब रावण को लघुशंका का अनुभव हुआ, तो उसने आत्मलिंग को पकड़ने के लिए एक ग्वाले का वेश धरे भगवान गणेश से अनुरोध किया. गणेश ने रावण को आगाह किया कि वे तीन बार पुकारने के बाद आत्मलिंग को धरती पर रख देंगे, यदि रावण समय पर वापस नहीं लौटा रावण संध्या वंदना में व्यस्त रहा और तय समय पर लौट न सका, जिस पर गणेश ने आत्मलिंग को गोकर्ण में जमीन पर रख दिया.;जब रावण लौटा और उसने देखा कि आत्मलिंग स्थापित हो चुका है, तो वह अत्यंत क्रोधित हुआ. 

उस  आत्मलिंग को उठाने के कई विफल प्रयास किए, जिसके बाद क्रोधवश आत्मलिंग को ढँकने वाले वस्त्र को मृदेश्वर नामक स्थान पर फेंक दिया यही मृदेश्वर आज मुरुदेश्वर के नाम से जाना जाता है, जहां यह पवित्र शिवलिंग स्थापित है.[ यह घटना भगवान शिव और रावण की भक्ति और दैवीय लीला का एक अद्भुत संगम दर्शाती है, जो इस स्थान को अत्यधिक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बनाती है.

समुद्र के किनारे स्थित मुरुदेश्वर, द्रविड़ वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जहां राजा गोपुरम की 20 मंजिला ऊंची संरचना से अरब सागर का मनोरम दृश्य पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है यह स्थान न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि कर्नाटक के तटीय क्षेत्र का एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण भी है.

--Advertisement--